CITES CoP-20 और 50 वर्षों की वैश्विक वन्यजीव व्यापार नीतियाँ

CITES CoP-20 Fifty Years of Protecting the Wild

Table of Contents

प्रस्तावना

पृथ्वी पर जीवन की विविधता ही प्रकृति की सबसे बड़ी शक्ति है। वन्यजीव—चाहे वे जंगलों में विचरण करने वाले हाथी हों, समुद्रों में तैरती शार्क हों या दुर्लभ औषधीय पौधे—मानव सभ्यता के लिए केवल सौंदर्य का स्रोत नहीं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन की रीढ़ हैं। किंतु बीते कुछ सौ वर्षों में मानव द्वारा किए गए अत्यधिक शोषण, अवैध शिकार और अनियंत्रित अंतरराष्ट्रीय व्यापार ने अनेक प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर ला खड़ा किया है।

इसी संकट से निपटने के लिए विश्व समुदाय ने CITES (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) जैसे समझौते को जन्म दिया। वर्ष 2023-25 के आसपास CITES के 50 वर्ष पूरे होना और CoP-20 (Conference of the Parties) का आयोजन—इसे वैश्विक सुर्खियों में ले आया है। यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और भविष्य की दिशा तय करने का भी है।

CITES: उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

20वीं सदी के मध्य तक यह स्पष्ट हो चुका था कि वन्यजीवों का संकट केवल किसी एक देश की समस्या नहीं है। हाथी दांत, गैंडे के सींग, दुर्लभ पक्षियों, सरीसृपों और औषधीय पौधों का व्यापार सीमाओं के पार फैल चुका था। एक देश में संरक्षण कानून होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय बाजार उस प्रयास को कमजोर कर देता था।

इसी पृष्ठभूमि में 1973 में वाशिंगटन डी.सी. में CITES को अपनाया गया, और 1975 में यह लागू हुआ। इसका मूल उद्देश्य यह था कि:

“अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कारण किसी भी वन्य जीव या वनस्पति प्रजाति का अस्तित्व खतरे में न पड़े।”

यह कोई पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाली संधि नहीं थी, बल्कि नियंत्रण और संतुलन पर आधारित व्यवस्था थी—जहाँ संरक्षण और आजीविका, दोनों को साथ लेकर चलने की सोच थी।

CITES की कार्यप्रणाली और संरचना

CITES की सफलता का आधार उसकी वैज्ञानिक और कानूनी संरचना है। यह संधि प्रजातियों को तीन परिशिष्टों (Appendices) में वर्गीकृत करती है:

परिशिष्टस्थितिव्यापार की अनुमति
Appendix Iअत्यंत संकटग्रस्त प्रजातियाँलगभग पूर्ण प्रतिबंध
Appendix IIसंकट की ओर बढ़ रही प्रजातियाँनियंत्रित और परमिट आधारित
Appendix IIIकिसी देश द्वारा विशेष संरक्षण की माँगसीमित नियंत्रण

इस प्रणाली ने पहली बार वन्यजीव व्यापार को वैज्ञानिक आंकड़ों और परमिट प्रणाली से जोड़ा।

CoP (Conference of the Parties): निर्णय-निर्माण की धुरी

CITES के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण संस्था है Conference of the Parties (CoP)। इसमें सभी सदस्य देश भाग लेते हैं और:

  • नई प्रजातियों को सूचीबद्ध किया जाता है

  • संरक्षण नियमों में बदलाव किए जाते हैं

  • अवैध वन्यजीव व्यापार से निपटने की रणनीतियाँ बनती हैं

अब तक 19 CoP हो चुकी हैं, और CoP-20 इस श्रृंखला की सबसे ऐतिहासिक कड़ी मानी जा रही है।

CoP-20 विशेष क्यों है?

CoP-20 इसलिए असाधारण है क्योंकि यह CITES के 50 वर्षों की यात्रा के साथ जुड़ी हुई है। आधी सदी में पहली बार विश्व समुदाय यह पूछ रहा है:

  • क्या CITES वास्तव में प्रजातियों को बचाने में सफल रहा?

  • किन नीतियों ने काम किया और किन्होंने नहीं?

  • 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए CITES को कैसे बदला जाए?

यह सम्मेलन केवल अतीत की समीक्षा नहीं, बल्कि भविष्य की रूपरेखा भी तय कर रहा है।

CITES के 50 वर्ष: उपलब्धियाँ और प्रभाव

पिछले 50 वर्षों में CITES ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं। अफ्रीकी हाथियों के संरक्षण में हाथीदांत व्यापार पर नियंत्रण, मगरमच्छ और कुछ व्हेल प्रजातियों की वापसी, और दुर्लभ पक्षियों के व्यापार में गिरावट—ये सभी CITES की सफलता के उदाहरण हैं।

इसके साथ ही CITES ने:

  • वन्यजीव संरक्षण को वैश्विक कूटनीति का विषय बनाया

  • वैज्ञानिक अनुसंधान को नीति-निर्माण से जोड़ा

  • अवैध व्यापार को संगठित अपराध के रूप में पहचान दिलाई

फिर भी क्यों बना हुआ है संकट?

इतनी उपलब्धियों के बावजूद आज भी वन्यजीव संकट गहराता जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं:

पहला, अवैध वन्यजीव व्यापार अब अरबों डॉलर का वैश्विक अपराध बन चुका है, जो माफिया और आतंकवादी नेटवर्क से जुड़ता जा रहा है।

दूसरा, ऑनलाइन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने अवैध व्यापार को छिपे रूप में बढ़ावा दिया है।

तीसरा, जलवायु परिवर्तन ने प्रजातियों के आवास नष्ट कर दिए हैं, जिससे वे और अधिक असुरक्षित हो गई हैं।

भारत और CITES: एक सक्रिय भागीदारी

भारत शुरू से ही CITES का समर्थक रहा है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को CITES के अनुरूप संशोधित किया गया। भारत ने बाघ, एशियाई हाथी, गंगा डॉल्फिन और कई औषधीय पौधों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत का दृष्टिकोण केवल प्रतिबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि स्थानीय समुदायों को संरक्षण का भागीदार बनाने पर आधारित है।

CoP-20 और वर्तमान में समाचारों में क्यों?

CoP-20 इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि:

  • यह CITES के 50 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है

  • कई नई प्रजातियों (विशेषकर शार्क, समुद्री जीव और औषधीय पौधे) को सूचीबद्ध करने के प्रस्ताव हैं

  • अवैध ऑनलाइन वन्यजीव व्यापार पर पहली बार व्यापक वैश्विक चर्चा हो रही है

  • विकासशील देशों के लिए वित्त और तकनीकी सहायता बढ़ाने पर जोर है

यह सम्मेलन यह तय करेगा कि आने वाले दशकों में वन्यजीव संरक्षण किस दिशा में जाएगा।

भविष्य की दिशा: संरक्षण से सह-अस्तित्व तक

अब स्पष्ट हो चुका है कि केवल कानून बना देना पर्याप्त नहीं है। भविष्य की नीतियाँ निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित होंगी:

  • सतत (Sustainable) वन्यजीव व्यापार, जहाँ संभव हो

  • तकनीक का उपयोग—DNA फॉरेंसिक, ई-परमिट

  • स्थानीय और आदिवासी समुदायों की भागीदारी

  • संरक्षण और विकास के बीच संतुलन

निष्कर्ष

CITES के 50 वर्ष और CoP-20 केवल एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के रिश्ते का आत्ममंथन हैं। यह हमें याद दिलाते हैं कि यदि वन्यजीव सुरक्षित नहीं हैं, तो मानव भविष्य भी सुरक्षित नहीं है।

CoP-20 का संदेश स्पष्ट है—
अब समय आ गया है कि हम वन्यजीवों को केवल संसाधन नहीं, बल्कि साझेदार मानें।

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