भारत में परिसीमन आयोग : 2026 के बाद भूमिका और महत्व

DELIMITATION COMMISSION OF INDIA - परिसीमन

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परिसीमन आयोग क्या है?

परिसीमन आयोग भारत सरकार द्वारा गठित एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संवैधानिक/कानूनी आयोग होता है। इसका मुख्य कार्य लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) की सीमाएँ निर्धारित करना या समय-समय पर उनका पुनः निर्धारण करना होता है। भारत जैसे विशाल और जनसंख्या की दृष्टि से विविध देश में समय के साथ जनसंख्या का वितरण असमान हो जाता है, जिसके कारण कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है, जबकि कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम रहती है। इस असमानता को दूर करने और लोकतंत्र के मूल सिद्धांत “एक व्यक्ति – एक वोट – एक मूल्य” को बनाए रखने के लिए परिसीमन आयोग की स्थापना की जाती है। यह आयोग यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक के मत का मूल्य लगभग समान रहे और प्रतिनिधित्व न्यायसंगत हो।

2026 में परिसीमन आयोग का गठन

भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर देश-व्यापी परिसीमन किया जा सकता है। वर्ष 1976 से लोकसभा और विधानसभा सीटों के राज्यों के बीच पुनर्वितरण पर जो रोक (Freeze) लगी हुई थी, उसकी अवधि 2026 में समाप्त हो रही है। इसी कारण यह माना जा रहा है कि 2026 के बाद एक नया परिसीमन आयोग गठित किया जाएगा।

यह प्रस्तावित आयोग नई जनगणना, जो संभवतः Census 2027 होगी, के आँकड़ों के आधार पर कार्य करेगा। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या तथा उनकी सीमाओं का पुनः निर्धारण किया जाएगा। इस परिसीमन प्रक्रिया से कई महत्वपूर्ण बदलाव संभव हैं, जैसे लोकसभा सीटों की संख्या में वृद्धि या कमी, राज्यों के बीच सीटों का पुनर्वितरण तथा महिला आरक्षण को व्यवहार में लागू करने की प्रक्रिया का प्रारंभ। इस प्रकार 2026 के बाद होने वाला परिसीमन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।

परिसीमन आयोग का गठन कौन करता है?

Delimitation Commission का गठन भारत सरकार, अर्थात केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। हालांकि यह कार्य सीधे कार्यपालिका के विवेक पर नहीं छोड़ा जाता, बल्कि इसके लिए संसद द्वारा एक विशेष कानून पारित किया जाता है, जिसे Delimitation Act कहा जाता है। संसद द्वारा इस अधिनियम के पारित होने के बाद उसी के प्रावधानों के अंतर्गत केंद्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है। एक बार आयोग का गठन हो जाने के बाद वह पूर्णतः स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और उसके निर्णयों में सरकार का कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होता।

परिसीमन आयोग के सदस्य

परिसीमन आयोग में आमतौर पर 3 प्रमुख सदस्य होते हैं:

पदविवरण
अध्यक्ष (Chairperson)भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश (या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश)
चुनाव आयुक्तभारत के मुख्य चुनाव आयुक्त या उनका प्रतिनिधि
राज्य चुनाव आयुक्तसंबंधित राज्यों के चुनाव आयुक्त (ex-officio सदस्य)

इसके अलावा:

प्रत्येक राज्य से 5 लोकसभा/विधानसभा सांसद विशेष आमंत्रित सदस्य होते हैं

इन सांसदों को मतदान का अधिकार नहीं होता, ये केवल सुझाव देते हैं

भारत में परिसीमन आयोग कितनी बार बना है?

भारत में अब तक 4 बार परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है:

क्रम संख्यावर्षआधार जनगणना
119521951 की जनगणना
219631961 की जनगणना
319731971 की जनगणना
420022001 की जनगणना

पाँचवाँ परिसीमन आयोग
2026 के बाद (संभावित रूप से Census 2027 के आधार पर) गठित किया जा सकता है।

परिसीमन आयोग के सदस्य

परिसीमन आयोग की संरचना इस प्रकार बनाई जाती है कि उसकी निष्पक्षता और संवैधानिक विश्वसनीयता बनी रहे। आयोग का अध्यक्ष सामान्यतः भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त या उनका प्रतिनिधि आयोग के सदस्य होते हैं। संबंधित राज्यों के चुनाव आयुक्त ex-officio सदस्य के रूप में आयोग में शामिल किए जाते हैं।

इनके अलावा प्रत्येक राज्य से कुछ लोकसभा और विधानसभा सांसदों को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में आयोग की बैठकों में बुलाया जाता है। हालांकि इन सांसदों को मतदान का अधिकार नहीं होता और वे केवल परामर्श एवं सुझाव देने की भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार आयोग की संरचना न्यायिक, चुनावी और प्रतिनिधिक तत्वों का संतुलित संयोजन होती है।

परिसीमन आयोग का कार्य

परिसीमन आयोग का प्रमुख कार्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ तय करना तथा जनसंख्या के आधार पर उनका पुनर्गठन करना है। आयोग यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो, जिससे प्रतिनिधित्व में संतुलन बना रहे। इसके साथ-साथ आयोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण भी करता है।

Delimitation की प्रक्रिया में आयोग भौगोलिक परिस्थितियों, प्रशासनिक इकाइयों जैसे जिला और तहसील, तथा सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखता है ताकि किसी क्षेत्र को अनावश्यक रूप से विभाजित न किया जाए। आयोग द्वारा पारित अंतिम परिसीमन आदेश भारत के राजपत्र (Gazette of India) में प्रकाशित किया जाता है और वही आदेश लागू माना जाता है। आयोग के निर्णय अंतिम होते हैं और सामान्यतः इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, जिससे इसकी संवैधानिक शक्ति स्पष्ट होती है।

भारत में परिसीमन आयोग कितनी बार बना है?

भारत में अब तक कुल चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है। पहला परिसीमन आयोग वर्ष 1952 में 1951 की जनगणना के आधार पर गठित किया गया था। दूसरा परिसीमन आयोग 1963 में 1961 की जनगणना के आधार पर बनाया गया। तीसरा परिसीमन आयोग 1973 में 1971 की जनगणना के आधार पर गठित हुआ। इसके बाद चौथा परिसीमन आयोग वर्ष 2002 में 2001 की जनगणना के आधार पर बनाया गया।

अब 2026 के बाद, संभावित रूप से Census 2027 के आधार पर, पाँचवें परिसीमन आयोग के गठन की संभावना व्यक्त की जा रही है, जो लंबे समय बाद राज्यों के बीच सीटों के पुनर्वितरण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

भारत में परिसीमन का इतिहास (1950s से 2025 तक)

भारत में Delimitation Commission/Exercises “मुख्य रूप से” 4 बड़े चरणों में देखे जाते हैं—1950s, 1960s, 1970s, 2000s

टाइमलाइन टेबल (Major Delimitation Exercises)

चरण/आयोगआधार Censusमुख्य परिणाम/विशेषताNotes
पहला1951आज़ादी के बाद शुरुआती लोकसभा/विधानसभा सीटों की संरचनाप्रारंभिक लोकतांत्रिक मैपिंग
दूसरा1961पुनर्गठन के बाद कई जगह सीटों/सीमाओं का पुनर्संतुलनराज्यों के पुनर्गठन के बाद relevance
तीसरा1971सीटों/सीमाओं में महत्वपूर्ण बदलाव; 1970s के बाद “freeze” era की पृष्ठभूमिबाद में inter-state seat changes पर रोक जैसी स्थिति
चौथा2001 (exercise 2002–2008)सीटों की संख्या (inter-state allocation) प्रायः नहीं बदली, लेकिन boundaries और SC/ST reservation mapping में बड़े बदलाव2002 Act के तहत commission; 2008 के आसपास finalisation/implementation की चर्चा मिलती है

976 से 2026 तक परिसीमन पर रोक (Freeze क्यों लगाया गया?)

वर्ष 1976 में संविधान संशोधन के माध्यम से लोकसभा और विधानसभा सीटों के राज्यों के बीच पुनर्वितरण पर रोक लगा दी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि जिन राज्यों ने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को सफलतापूर्वक अपनाया है, उन्हें कम जनसंख्या वृद्धि के कारण राजनीतिक प्रतिनिधित्व में नुकसान न उठाना पड़े। इस रोक को समय-समय पर बढ़ाया गया और अंततः इसे 2026 तक लागू रखा गया।

इसी रोक के कारण 2002 के Delimitation Commission ने लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं किया, बल्कि केवल निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनः निर्धारण किया गया।

2026 के बाद परिसीमन क्यों इतना महत्वपूर्ण है?

2026 के बाद होने वाला परिसीमन भारत की राजनीतिक संरचना को गहराई से प्रभावित कर सकता है। इससे उत्तर और दक्षिण भारत के बीच प्रतिनिधित्व के संतुलन को लेकर नई बहसें सामने आ सकती हैं। इसके अतिरिक्त लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ने की संभावना भी जताई जा रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला आरक्षण को लागू करने के लिए परिसीमन एक अनिवार्य प्रक्रिया है, इसलिए 2026 के बाद का परिसीमन इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

Delimitation Commission भारतीय लोकतंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह आयोग समय-समय पर जनसंख्या और प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन स्थापित कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाता है। 2026 के बाद गठित होने वाला परिसीमन आयोग भारत के चुनावी नक्शे को नए सिरे से परिभाषित करेगा और आने वाले दशकों की राजनीतिक दिशा तथा शक्ति संतुलन को निर्धारित करेगा।

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