विश्व मानचित्र पर भारत की पहचान एक ऐसे राष्ट्र के रूप में है जो “विविधता में एकता” को केवल मानता ही नहीं, बल्कि उसे हर दिन जीता है। इस विविधता का सबसे मजबूत आधार Cultural and Linguistic Heritage of India है। यह विरासत हज़ारों वर्षों के इतिहास, भौगोलिक विविधता और आध्यात्मिक चेतना का परिणाम है। भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना इसके राज्यों के अद्वितीय प्रतीकों, समृद्ध भाषाई इतिहास और शास्त्रीय नृत्य रूपों की गहन कृपा के माध्यम से व्यक्त होता है।
जब हम Cultural and Linguistic Heritage of India की चर्चा करते हैं, तो हम केवल अतीत को नहीं देख रहे होते; बल्कि हम एक ऐसी जीवंत परंपरा का अवलोकन कर रहे होते हैं जो आज भी देश के हर कोने में सांस लेती है।
1. भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आधिकारिक प्रतीक: पारिस्थितिक और सांस्कृतिक पहचान
प्रत्येक भारतीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (UT) के अपने आधिकारिक प्रतीक हैं, जिनमें राजकीय पशु, पक्षी, वृक्ष, पुष्प और अक्सर एक फल शामिल होता है। ये केवल सजावटी नहीं हैं; ये उस क्षेत्र की विशिष्ट पारिस्थितिकी, जैव विविधता और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। Cultural and Linguistic Heritage of India के भीतर, ये प्रतीक सिद्ध करते हैं कि भारतीय समाज प्रकृति के साथ कितनी गहराई से जुड़ा हुआ है।
उत्तर भारतीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश
उत्तर भारत के प्रतीक ऊबड़-खाबड़ हिमालयी चोटियों और उपजाऊ भारत-गंगा के मैदानों को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख ने हिम तेंदुआ (Snow Leopard) को अपने राजकीय पशु के रूप में चुना है, जो कठोरतम पर्वतीय वातावरण में जीवित रहने का प्रतीक है।
| राज्य/UT | राजकीय पशु | राजकीय पक्षी | राजकीय वृक्ष | राजकीय पुष्प | राजकीय फल |
| हिमाचल प्रदेश | हिम तेंदुआ | वेस्टर्न ट्रेगोपान | देवदार | पिंक रोडोडेंड्रोन | लाल अंबरी सेब |
| पंजाब | काला हिरण | उत्तरी गोशॉक (बाज़) | शीशम | ग्लेडियोलस | दशहरी आम |
| हरियाणा | काला हिरण | ब्लैक फ्रेंकोलिन | पीपल | कमल | चीकू |
| उत्तराखंड | कस्तूरी मृग | हिमालयन मोनल | बुरांश | ब्रह्म कमल | काफल |
| उत्तर प्रदेश | बारहसिंगा | सारस क्रेन | अशोक | पलाश | बनारसी लंगड़ा आम |
| दिल्ली (NCT) | नीलगाय | गौरैया | गुलमोहर | अल्फला | दशहरी आम |
| लद्दाख | हिम तेंदुआ | काली गर्दन वाला सारस | जुनिपर | – | – |
| जम्मू और कश्मीर | हंगुल (हिरण) | कलिज तीतर | चिनार | कॉमन रोडोडेंड्रोन | – |
मध्य और पश्चिम भारत
इस क्षेत्र में घने जंगलों और विशाल रेगिस्तानों का मिश्रण है। एशियाई शेर (Asiatic Lion) केवल गुजरात में पाया जाता है, जो इसे भारत की प्राकृतिक विरासत का एक अनूठा गौरव बनाता है। राजस्थान अपने मरुस्थलीय जीवन को सम्मान देने के लिए चिंकारा के साथ-साथ ऊंट (Camel) को भी राजकीय पशु घोषित करता है।
| राज्य | राजकीय पशु | राजकीय पक्षी | राजकीय वृक्ष | राजकीय पुष्प | राजकीय फल |
| राजस्थान | चिंकारा/ऊंट | गोडावण | खेजड़ी | रोहिड़ा | बेर |
| गुजरात | एशियाई शेर | ग्रेटर फ्लेमिंगो | बरगद | गेंदा | गिर केसर आम |
| महाराष्ट्र | विशाल गिलहरी | हरियाल | आम | जारुल | हापुस (Alphonso) |
| मध्य प्रदेश | बारहसिंगा | दूधराज | बरगद | सफेद लिली | कुट्टियाट्टूर आम |
| छत्तीसगढ़ | जंगली भैंसा | पहाड़ी मैना | साल | राइनोकोस्टिलिस गिगेंटिया | सखुआ फल |
| गोवा | गौर | रूबी-थ्रोटेड बुलबुल | मट्टी | फ्रेंगिपानी (चंपा) | काजू |
पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत
उत्तर-पूर्व क्षेत्र जैव विविधता का हॉटस्पॉट है। नागालैंड में ग्रेट हॉर्नबिल (Great Hornbill) का इतना सांस्कृतिक महत्व है कि राज्य “हॉर्नबिल महोत्सव” आयोजित करता है, जिसे “त्योहारों का त्योहार” कहा जाता है। मणिपुर का संगाई हिरण केवल लोकटक झील के तैरते हुए ‘फुमदी’ पर पाया जाता है, जो भारत की विरासत के एक दुर्लभ हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
| राज्य | राजकीय पशु | राजकीय पक्षी | राजकीय वृक्ष | राजकीय पुष्प | राजकीय फल |
| असम | एक सींग वाला गेंडा | व्हाइट-विंग्ड वुड डक | होलोंग | फॉक्सटेल ऑर्किड | काजी नेमू |
| अरुणाचल प्रदेश | मिथुन | ग्रेट हॉर्नबिल | होलोंग | फॉक्सटेल ऑर्किड | हिमालयन कीवी |
| मणिपुर | संगाई | श्रीमती ह्यूम का तीतर | तून | सिरोई लिली | अनानास |
| पश्चिम बंगाल | मत्स्य बिल्ली | सफेद गले वाला किंगफिशर | चैतिम | शिउली (चमेली) | हिमसागर आम |
| ओडिशा | सांभर हिरण | नीलकंठ | भारतीय गूलर | अशोक | कटहल |
दक्षिण भारत और द्वीप समूह
एशियाई हाथी केरल, कर्नाटक और झारखंड का साझा राजकीय पशु है, जो Cultural and Linguistic Heritage of India में बुद्धिमत्ता और शक्ति का प्रतीक है।
| राज्य/UT | राजकीय पशु | राजकीय पक्षी | राजकीय वृक्ष | राजकीय पुष्प | राजकीय फल |
| कर्नाटक | एशियाई हाथी | नीलकंठ | चंदन | कमल | बादामी आम |
| केरल | एशियाई हाथी | ग्रेट हॉर्नबिल | नारियल | कनीकोन्ना | कटहल |
| तमिलनाडु | नीलगिरी तहर | पन्ना कबूतर | ताड़ | कांधल (अग्नि शिखा) | कटहल |
| आंध्र प्रदेश | काला हिरण | रोज-रिंग्ड पैराकीट | नीम | जल कुमुदनी | बंगनपल्ली आम |
| तेलंगाना | चित्तीदार हिरण | नीलकंठ | शमी | तंगेदु पुव्वु | हिमायत आम |
| अंडमान व निकोबार | डुगोंग (समुद्री गाय) | अंडमान वुड पिजन | अंडमान पादौक | अंडमान पयिनमा | अंडमान कोकम |
2. 22 अनुसूचित भाषाएँ: विविधता के लिए एक संवैधानिक ढांचा
भाषा किसी भी संस्कृति की आत्मा होती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule) उन 22 भाषाओं को सूचीबद्ध करती है जिन्हें सरकार बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह अनुसूची Cultural and Linguistic Heritage of India को एक कानूनी पहचान प्रदान करती है।
22 अनुसूचित भाषाओं की सूची
वर्तमान संवैधानिक ढांचे के अनुसार, निम्नलिखित 22 भाषाओं को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त है:
असमिया
बंगाली
बोडो
डोगरी
गुजराती
हिंदी
कन्नड़
कश्मीरी
कोंकणी
मैथिली
मलयालम
मणिपुरी
मराठी
नेपाली
ओडिया
पंजाबी
संस्कृत
संथाली
सिंधी
तमिल
तेलुगु
उर्दू
ऐतिहासिक संदर्भ
1950 में, आठवीं अनुसूची में शुरू में 14 भाषाएँ शामिल थीं। समय के साथ, देश की विकसित होती भाषाई चेतना को दर्शाने के लिए और भाषाएँ जोड़ी गईं:
1967 (21वां संशोधन): सिंधी को जोड़ा गया।
1992 (71वां संशोधन): कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को शामिल किया गया।
2003 (92वां संशोधन): बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली जोड़ी गईं।
शास्त्रीय भाषाओं का उदय (कुल 11)
अक्टूबर 2024 तक, भारत सरकार ने कुल 11 भाषाओं को “शास्त्रीय भाषा” (Classical Language) का दर्जा प्रदान किया है। पात्र होने के लिए, एक भाषा का 1,500–2,000 वर्षों का दर्ज इतिहास और एक मौलिक साहित्यिक परंपरा होनी चाहिए। 2024 में जोड़े गए नवीनतम नामों में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली शामिल हैं।
| शास्त्रीय भाषा | मान्यता का वर्ष | महत्व |
| तमिल | 2004 | प्राचीनतम जीवित साहित्य (संगम) |
| संस्कृत | 2005 | कई भारत-आर्य भाषाओं की जननी |
| तेलुगु और कन्नड़ | 2008 | सहस्राब्दी पुराने साहित्यिक इतिहास |
| मलयालम | 2013 | संस्कृत और तमिल का अनूठा भाषाई मिश्रण |
| ओडिया | 2014 | विशिष्ट प्राचीन लिपि और मंदिर शिलालेख |
| मराठी | 2024 | 2,500 से अधिक वर्षों का इतिहास |
| पाली और प्राकृत | 2024 | बुद्ध और जैन उपदेशों की भाषाएँ |
| असमिया और बंगाली | 2024 | समृद्ध पूर्वी साहित्यिक परंपराएं (चर्यापद) |
3. भारत के शास्त्रीय नृत्य: गति में कहानियाँ
भारतीय शास्त्रीय नृत्य Cultural and Linguistic Heritage of India का सबसे दृश्यमान और जीवंत रूप है। नाट्य शास्त्र (200 ईसा पूर्व और 200 ईस्वी के बीच संकलित) में निहित, ये नृत्य योग, आध्यात्मिकता और कहानी कहने का मिश्रण हैं।
संगीत नाटक अकादमी वर्तमान में 9 शास्त्रीय नृत्य रूपों को मान्यता देती है :
भरतनाट्यम (तमिलनाडु): सबसे पुराना जीवित नृत्य रूप, जो अपनी ज्यामितीय सटीकता और ‘अरैमंडी’ मुद्रा के लिए जाना जाता है। यह मंदिरों में एक अनुष्ठान (सदिर) के रूप में शुरू हुआ था।
कथक (उत्तर भारत): ‘कथा’ शब्द से निकला है। यह अपने जटिल पैरों के काम (तत्कार) और तेज़ चक्करों के लिए प्रसिद्ध है। यह हिंदू और मुगल दरबारी प्रभावों का मिश्रण है।
कथकली (केरल): एक शैलीबद्ध “नृत्य-नाटिका” जिसमें विस्तृत मेकअप और वेशभूषा होती है। यह चेहरे के गहन भावों का उपयोग करके रामायण और महाभारत की कहानियों का मंचन करता है।
ओडिसी (ओडिशा): इसे “गतिशील मूर्तिकला” कहा जाता है, क्योंकि यह मंदिर की दीवारों पर पाई जाने वाली मुद्राओं को दर्शाता है। ‘त्रिभंग’ (तीन-झुकाव) मुद्रा इसकी पहचान है।
कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश): एक नृत्य-नाटक जिसमें भाषण और अभिनय शामिल है। इसका एक प्रसिद्ध तत्व ‘तरंगम’ है, जहाँ नर्तक पीतल की थाली के किनारे पर संतुलन बनाता है।
मोहिनीअट्टम (केरल): इसका नाम भगवान विष्णु के ‘मोहिनी’ अवतार के नाम पर रखा गया है। यह एक अत्यंत सुंदर और स्त्री प्रधान नृत्य है जो कोमल गतिविधियों द्वारा पहचाना जाता है।
मणिपुरी (मणिपुर): यह वैष्णव विश्वास और राधा-कृष्ण की ‘रासलीला’ से गहराई से जुड़ा है। इसमें घुंघरू का प्रयोग नहीं होता ताकि पैरों की गति कोमल रहे।
सत्रिया (असम): 15वीं शताब्दी में संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा पेश किया गया। यह मठों (सत्रों) में भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति के माध्यम के रूप में विकसित हुआ।
छऊ (पूर्वी भारत): ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में पाया जाने वाला एक जनजातीय युद्ध कला नृत्य। यह विस्तृत मुखौटों का उपयोग करता है और लोक कथाओं का चित्रण करता है।
निष्कर्ष: विरासत का संरक्षण
Cultural and Linguistic Heritage of India केवल एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है; यह हमारे भविष्य की नींव है। राजकीय प्रतीकों से लेकर, जो हमें हमारे पारिस्थितिक कर्तव्यों की याद दिलाते हैं, उन 22 भाषाओं तक जो हमें आवाज़ देती हैं, और शास्त्रीय नृत्य जो हमारी आध्यात्मिक गहराई को व्यक्त करते हैं—यह विरासत एक वैश्विक खजाना है।
2024 और 2025 में, अधिक शास्त्रीय भाषाओं की मान्यता और ‘भाषिनी’ (Bhashini) जैसे AI के माध्यम से डिजिटल संरक्षण पर ध्यान देना यह सुनिश्चित करता है कि हमारी प्राचीन जड़ें आधुनिक दुनिया में भी प्रासंगिक बनी रहें। इस विविधता को अपनाना ही वास्तव में भारत को एक “विश्व गुरु” बनाता है।

























