IMF Report on India & Putin’s India Visit 2025 Explained

IMF Report on India & Putin’s India Visit 2025

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भारत आज वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। एक ओर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत के आर्थिक प्रदर्शन का अपना नवीनतम और गहन आकलन जारी किया है, जिसमें मजबूत विकास गति, घटती मुद्रास्फीति, संरचनात्मक सुधार और एक अधिक अस्थिर वैश्विक वातावरण में भारत को जिन जोखिमों का सामना करना होगा, उन सबका विश्लेषण किया गया है। दूसरी ओर, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली की राजकीय यात्रा एक बड़ी कूटनीतिक घटना है — जिसका उद्देश्य रक्षा सहयोग को गहरा करना, ऊर्जा एवं परमाणु साझेदारी का विस्तार, व्यापार तंत्र को मजबूत करना और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत-रूस संबंधों के रणनीतिक महत्व को पुनः सुदृढ़ करना है।
इन दोनों घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि भारत न केवल आर्थिक महाशक्ति के रूप में तेज़ी से उभर रहा है, बल्कि अपनी विदेश नीति और रणनीतिक साझेदारियों को भी आत्मविश्वास के साथ आकार दे रहा है। नीचे इन दोनों विषयों का एक व्यापक, शोध-आधारित विश्लेषण प्रस्तुत है, जिसमें उनकी महत्ता, उद्देश्य, जोखिम और भारत पर दीर्घकालिक प्रभाव शामिल हैं।

IMF रिपोर्ट और भारत का आर्थिक दृष्टिकोण — गहन विश्लेषण

IMF की 2025 की Article IV वार्ताओं और साथ आई स्टाफ रिपोर्ट में भारत के व्यापक आर्थिक प्रदर्शन को सकारात्मक बताया गया है: विकास मजबूत बना हुआ है, मुद्रास्फीति घट रही है, वित्तीय क्षेत्र लचीला दिख रहा है और राजकोषीय समेकन में सुधार हुआ है — हालांकि कुछ जोखिम भी स्पष्ट रूप से चिन्हित किए गए हैं (जैसे वैश्विक शुल्क में वृद्धि, व्यापार तनाव, डेटा गुणवत्ता से जुड़े प्रश्न और राजकोषीय बफर पुनर्निर्माण की आवश्यकता)। IMF का अनुमान है कि 2025–26 में भारत की विकास दर मजबूत रहेगी (लगभग 6% के मध्य स्तर पर), मगर मुद्रास्फीति, राजकोषीय विश्वसनीयता और संरचनात्मक सुधारों पर निरंतर ध्यान जरूरी है।

IMF ने क्या कहा — मुख्य बिंदु

1. विकास और हालिया प्रदर्शन

IMF की टीम के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था “अच्छा प्रदर्शन जारी रखे हुए है।” FY2025/26 की शुरुआत में GDP मजबूत बनी रही। IMF के बेसलाइन पर भारत की विकास दर लगभग 6.6% रखी गई है। यह वृद्धि घरेलू मांग और सेवाओं के निर्यात के चलते है।

2. मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति

मुख्य मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से घटी है (जिसमें खाद्य कीमतों में राहत का बड़ा योगदान रहा)। RBI के डेटा-आधारित दृष्टिकोण का IMF ने समर्थन किया, पर साथ ही चेताया कि खाद्य कीमतों में अचानक उछाल जोखिम बना हुआ है।

3. वित्तीय एवं कॉर्पोरेट क्षेत्र की मजबूती

IMF ने बताया कि बैंकों की पूँजी स्थिति मजबूत है और NPA ऐतिहासिक रूप से कम। मतलब भारतीय बैंकिंग प्रणाली मध्यम झटकों को सह सकती है — हालांकि वैश्विक अनिश्चितता के कारण सतर्कता जरूरी है।

4. बाहरी जोखिम

IMF के अनुसार भारत की बाहरी स्थिति “मूलभूत मानकों से कुछ मजबूत” दिखती है, लेकिन वैश्विक व्यापार धीमा होने और बढ़ते शुल्क से जोखिम हैं। IMF ने 50% अमेरिकी शुल्क जैसे तनावपूर्ण परिदृश्य भी मॉडल किए।

5. डेटा गुणवत्ता

राष्ट्रीय खातों के बेस ईयर और पद्धति से जुड़े मुद्दों की IMF ने आलोचना की, हालांकि भारत की GDP वृद्धि पर संदेह नहीं जताया। IMF ने डेटा की गुणवत्ता और पारदर्शिता बढ़ाने की सिफारिश की।

गहन विश्लेषण — यह IMF रिपोर्ट क्यों महत्वपूर्ण है?

1. वृद्धि के चालक

2024–25 और 2025/26 की शुरुआत में वृद्धि का मुख्य आधार घरेलू मांग रही — निजी उपभोग, निवेश और सरकारी पूंजी व्यय। यह संरचना वैश्विक व्यापार तनाव से भारत को कुछ हद तक बचाती है।

2. मुद्रास्फीति — बाजारों पर प्रभाव

मुद्रास्फीति घटने से RBI को राहत मिली है, लेकिन वैश्विक ऊर्जा और खाद्य झटके मौद्रिक नीति को प्रभावित कर सकते हैं।

3. राजकोषीय नीति और विश्वसनीयता

IMF ने पूंजी व्यय की प्रशंसा की लेकिन वित्तीय बफर को फिर से बनाने की जरूरत बताई। कर सुधार, सब्सिडी लक्ष्यीकरण और राजकोषीय अनुशासन पर बल दिया।

4. बाहरी जोखिम

विश्व स्तर पर व्यापार संरक्षणवाद बढ़ रहा है। IMF ने चेताया कि यह भारत के निर्यात और चालू खाता स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

5. संरचनात्मक सुधार

IMF की नजर में भारत को श्रम, भूमि, जलवायु निवेश, औपचारिक क्षेत्र विस्तार और मानव पूंजी सुधारों पर जोर देना चाहिए।

नीतिगत प्राथमिकताएँ

  • डेटा गुणवत्ता में सुधार

  • राजकोषीय अनुशासन

  • मुद्रास्फीति के लिए सतर्क मौद्रिक नीति

  • निर्यात विविधीकरण

  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार

IMF निष्कर्ष

IMF के अनुसार भारत वैश्विक सुस्ती के बीच उम्मीद की किरण है — मजबूत विकास, घटती मुद्रास्फीति, और स्थिर वित्तीय प्रणाली के साथ। लेकिन यह आशावाद सख्त सुधारों और सावधानीपूर्ण नीतियों पर निर्भर है।

Putin’s India Visit 2025

पुतिन की भारत यात्रा (दिसंबर 2025) — उद्देश्य, एजेंडा और संभावित परिणाम

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा — India-Russia Annual Summit — का मुख्य फोकस है:

  • रक्षा सहयोग (S-400, Su-57, सह-उत्पादन)

  • ऊर्जा और परमाणु साझेदारी (SMRs, कुडनकुलम)

  • व्यापार और भुगतान प्रणाली

  • रणनीतिक औद्योगिक साझेदारी

यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब रूस-भारत संबंध और तेजी से मजबूत हो रहे हैं और भारत वैश्विक दबावों के बीच रणनीतिक संतुलन बनाए हुए है।

यात्रा का महत्व — क्यों अभी, और क्यों पुतिन

  • पुतिन की यह भारत यात्रा चार साल बाद हो रही है — पिछली बार वे 2021 में आए थे।

  • दोनों देश 2000 में Strategic Partnership स्थापित कर चुके हैं, जिसे 2010 में अपग्रेड करके “Special and Privileged Strategic Partnership” बनाया गया।

  • इस यात्रा का श्रेय है कि बदलती वैश्विक भू-राजनीति, यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, ऊर्जा संकट — इन सबके बीच भारत और रूस अपने पुराने रिश्तों को फिर से सक्रिय करना चाहते हैं।

  • इसलिए, 23वां वार्षिक शिखर सम्मेलन सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं, बल्कि एक रणनीतिक फोकस है — जिसमें दोनों देश अपनी साझेदारी की दिशा तय करेंगे।

एजेंडा — क्या-क्या मुद्दे इस बैठक की मेज पर

• रक्षा और सैन्य तकनीक

  • यात्रा में रक्षा सहयोग — जैसे कि मिसाइल रक्षा प्रणाली, आधुनिक विमान और सैन्य हार्डवेयर — प्रमुख चर्चाओं में है। विशेष रूप से S-400 Triumf वायु रक्षा प्रणाली और संभवतः Su-57 stealth fighter फाइटर जेट्स पर बात होने की उम्मीद है।

  • इसके अलावा, ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा सामग्री के स्थानीय उत्पादन, पार्ट्स की आपूर्ति, स्पेयर पार्ट्स आदि पर भी जोर हो सकता है — खासकर इसलिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद सप्लाई चेन प्रभावित रही है।

• ऊर्जा और परमाणु-ऊर्जा सहयोग

  • भारत और रूस पहले से ही ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी कर रहे हैं, और इस बार इस सहयोग को और मजबूत करने की कोशिश होगी।

  • परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में रूस की भागीदारी, उदाहरण के लिए कुडनकुलम Nuclear Power Plant (KKNPP), को आगे बढ़ाना एजेंडा में होगा।

  • साथ ही तेल और गैस, कच्चे तेल की आपूर्ति, रूस से रूस के तेल/ऊर्जा संसाधन से भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने की रणनीति — ये बातें बातचीत की मेज पर होंगी।

• व्यापार, आर्थिक सहयोग एवं वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था

  • दोनों देशों ने पहले ही आर्थिक, व्यापार और तकनीकी सहयोग को व्यापक किया है। इस साल की बैठक में व्यापार को और बढ़ावा देने की योजना होगी — विशेषकर रूस से भारतीय वस्तुओं (फार्मा, मशीनरी, कृषि आदि) के निर्यात को बढ़ाने पर।

  • पश्चिमी प्रतिबंधों और रूस के आर्थिक हालात के कारण, मुद्रा विनिमय एवं भुगतान प्रणाली (शायद रुपये-रूबल पैमेंट) को स्थिर और सुगम बनाने पर भी विचार होगा।

  • इसके अलावा, कनेक्टिविटी — जैसे कि समुद्री/ट्रांसपोर्ट लिंक, लॉजिस्टिक कॉरिडोर, व्यापार मार्गों को फिर से सक्रिय करने का प्रस्ताव हो सकता है।

• विज्ञान, टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष व शैक्षिक सहयोग

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी व अंतरिक्ष अनुसंधान में रूस-भारत सहयोग की जड़ लंबी है। इस बैठक में इस हिस्से को नया बल मिलने की संभावना है। विशेष रूप से टेक्नोलॉजी हस्तांतरण, नवाचार, नैनो टेक्नोलॉजी, और अन्य आधुनिक क्षेत्रों पर चर्चा होगी।

  • उच्च शिक्षा, अनुसंधान, भारतीय छात्रों के लिए रूस में अवसर — ये पहल पहले से हैं; इन्हें और मजबूत करने की दिशा में कदम हो सकते हैं।

• वैश्विक व क्षेत्रीय कूटनीति — भू-राजनीतिक संतुलन, शांति, सुरक्षा

  • यूक्रेन संकट, अंतरराष्ट्रीय दबाव और पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच, यह यात्रा दोनों देशों के लिए एक संदेश है — कि भारत-रूस साझेदारी किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं, बल्कि सामूहिक हित, स्थिरता और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समर्थन के लिए है।

  • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) को आगे ले जाना और रूस के साथ संतुलित रिश्तों को बनाए रखना, वैश्विक संतुलन के लिए अहम होगा

संभावित परिणाम — अगर अपेक्षित समझौते होते हैं

क्षेत्रसंभावित नतीजे / असर
रक्षाS-400, Su-57 आदि में आगे की खरीद या साझेदारी; रक्षा उत्पादन में “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा; स्पेयर पार्ट्स व सप्लाई चेन मजबूत होना
ऊर्जा / परमाणु शक्तिकुडनकुलम जैसी परियोजनाओं में तेजी; भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत; कच्चे तेल / गैस की आपूर्ति स्थिर या सस्ती कीमतों पर संभव
व्यापार व अर्थव्यवस्थाभारतीय निर्यात में वृद्धि (फार्मा, कृषि, मशीनरी आदि); व्यापार घाटा धीरे-धीरे संतुलित; रूबल-रुपये जैसी मुद्रा भुगतान व्यवस्था से आर्थिक लेन-देन में स्थिरता
तकनीक और टेक्नोलॉजीविज्ञान, अंतरिक्ष और नवाचार में सहयोग; टेक हस्तांतरण, उच्च शिक्षा व अनुसंधान में द्विपक्षीय परियोजनाएँ
भू-राजनीतिक संतुलनभारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूती; बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के पक्ष में एक सशक्त संकेत; अंतरराष्ट्रीय मंच पर सहयोग और सामंजस्य विकास

चुनौतियाँ, सवाल और प्रतिबंधित जोखिम

  • रूस पर जारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध — इससे ऊर्जा व वित्तीय लेन-देन प्रभावित हो सकते हैं। भुगतान और बैंकिंग सिस्टम बाधित होने की संभावना बनी हुई है।

  • रूस-चीन के करीबी रिश्ते — भारत गहराई से रूस के साथ है, पर चीन के साथ सीमाविवाद और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण भारत को संतुलन बनाना होगा।

  • विश्व स्तर पर भारत की छवि — पश्चिमी देशों के सामने भारत-रूस रिश्तों को फिर से मजबूत करना भारत की सामरिक और आर्थिक स्वायत्तता की परीक्षा है।

  • “Make in India” तथा स्थानीय निर्माण के वादे — इनके कार्यान्वयन, समयसीमा, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, गुणवत्ता नियंत्रण आदि — ये सब बड़े प्रशासनिक, तकनीकी और आर्थिक प्रयास मांगेंगे।

क्यों यह यात्रा अभी समय की मांग थी

  • वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है: यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंधों, ऊर्जा अस्थिरता — सभी ने भारत की रणनीतिक चुनौतियाँ बढ़ाई हैं। ऐसे में रूस-भारत साझेदारी को सक्रिय करना भारत के हित में है।

  • भारत की ऊर्जा और सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए — रूस अभी भी एक भरोसेमंद साझेदार है। नई साझेदारी से लंबी अवधि की रणनीति तैयार हो सकती है।

  • भारत अपनी कूटनीति में बहुध्रुवीयता बनाए रखना चाहता है; रूस के साथ मजबूत संबंध इस दिशा में मदद करते हैं।

  • आर्थिक और तकनीकी फायदा: व्यापार, निवेश, टेक्नोलॉजी, शिक्षा, ऊर्जा — इन सब आयामों में रूस-भारत मिलकर आगे चल सकते हैं।

निष्कर्ष — इस यात्रा का भारत-रूस रिश्तों पर दीर्घकालिक प्रभाव

व्लादिमीर पुतिन की दिसंबर 2025 की यह भारत यात्रा प्रतीकात्मक होने के साथ-साथ व्यावहारिक मायनों में भी बेहद अहम है। यह सिर्फ राजनयिक मुलाकात नहीं, बल्कि दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के भविष्य का निर्धारण है। अगर इस शिखर सम्मेलन में रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, टेक्नोलॉजी और कूटनीति के लिए जो बिंदु तय होंगे, उनका सही और प्रभावी कार्यान्वयन हुआ — तो आने वाले दशक में भारत-रूस युग पुनर्जागृत हो सकता है।

भारत — अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए — न केवल रक्षा और ऊर्जा के लिहाज़ से बल्कि आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी मोर्चों पर भी रूस के साथ एक नया, मजबूत अध्याय खोलने की राह पर दिखता है। यह यात्रा, वैश्विक अस्थिरता के दौर में, भारत-रूस रिश्तों को फिर से एक स्तंभ पर स्थापित करने का प्रयास है।

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