सी. पी. राधाकृष्णन, जिन्हें पी. राधाकृष्णन के नाम से भी जाना जाता है, भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं और अब वे देश के संवैधानिक उप प्रमुख की भूमिका निभाएंगे। उन्होंने आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन के उम्मीदवार और पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के अंतर से हराकर निर्णायक जीत हासिल की। चुनाव में कुल 767 वोट डाले गए, जिनमें से 752 वैध और 15 अमान्य थे। राधाकृष्णन को 781-सदस्यीय निर्वाचक मंडल में से 452 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 300 वोट प्राप्त हुए।
बहुत से लोग उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में जानते हैं, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने 31 जुलाई 2024 को संभाली थी। बीजेपी और उसके गठबंधन सहयोगियों ने गहन विचार-विमर्श के बाद उन्हें एनडीए का उम्मीदवार चुना। उनका निर्वाचन हमारे लोकतंत्र के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है और देश की राजनीतिक दिशा को आकार देता है।
सीपी राधाकृष्णन ने 452 वोटों से उपराष्ट्रपति चुनाव जीता
एनडीए के सीपी राधाकृष्णन ने 9 सितंबर 2025 को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में स्पष्ट जीत हासिल की। उन्हें 752 वैध मतों में से 452 वोट मिले। आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन के बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले, जिससे 152 वोटों का अंतर बना। संसद के नए भवन में वसुधा हॉल में हुए चुनाव में 767 निर्वाचक उपस्थित हुए — जो 98.2% मतदान दर को दर्शाता है।
राधाकृष्णन की जीत की संख्या उम्मीद से अधिक थी, जबकि एनडीए के पास कागजों पर 427 सांसद और 11 वाईएसआरसीपी के सदस्य थे। भाजपा नेताओं का दावा था कि लगभग 15 विपक्षी सांसदों ने एनडीए के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। यह एक बड़ा संकेत है कि भाजपा का आंकड़ा अनुमानित 440 से भी आगे निकल गया, जिससे एनडीए की संख्यात्मक ताकत सामने आई।
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों से अचानक इस्तीफा देने के बाद यह चुनाव आवश्यक हुआ। अब राधाकृष्णन भारत के दूसरे सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर आसीन होंगे और राज्यसभा के सभापति की भूमिका निभाएंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि राधाकृष्णन का “जनजीवन में दशकों का समृद्ध अनुभव राष्ट्र की प्रगति में अहम योगदान देगा।” पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भी शुभकामनाएं दीं और कहा कि यह भूमिका “देश के प्रतिनिधियों का उन पर विश्वास दर्शाती है।”
कैसी रही राधाकृष्णन की राजनीतिक यात्रा?
सीपी राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक के रूप में की। आरएसएस के साथ उनके आरंभिक वर्षों ने उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा को आकार दिया। इन मूल अनुभवों ने उनके सार्वजनिक जीवन के निर्णयों को गहराई से प्रभावित किया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उनके औपचारिक राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। वे तमिलनाडु के कोयंबटूर लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद चुने गए। उनके कार्यकाल ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत किया जो क्षेत्रीय विकास को प्राथमिकता देते हुए पार्टी की राष्ट्रीय विचारधारा के अनुरूप कार्य करते रहे। सांसद रहते हुए उन्होंने कई संसदीय समितियों में भाग लिया और विधायी प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण अनुभव अर्जित किया।
एक अनुभवी संगठनकर्ता के रूप में उन्होंने तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के रूप में प्रशासनिक दक्षता प्रदर्शित की। उन्होंने उस राज्य में पार्टी को मजबूत किया जहाँ क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। उनकी नेतृत्व क्षमता ने उन्हें झारखंड और फिर महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका में पहुँचाया। इन संवैधानिक जिम्मेदारियों ने उन्हें बड़े दायित्वों के लिए तैयार किया।
अब तक भारत के अधिकांश उपराष्ट्रपति न्यायिक या कूटनीतिक पृष्ठभूमि से आते रहे हैं। राधाकृष्णन का यह पद प्राप्त करना दर्शाता है कि अब राजनेताओं का भी इस संवैधानिक पद तक पहुँचना संभव हो गया है। उनका सफर यह दिखाता है कि भारतीय राजनीति में अब संगठनात्मक अनुभव और पार्टी के प्रति निष्ठा बड़े पदों तक पहुँचने में अहम भूमिका निभाते हैं।
राधाकृष्णन का निर्वाचन राजनीतिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है?
राधाकृष्णन का भारत के दूसरे सबसे ऊँचे संवैधानिक पद पर पहुँचना देश के शासन में कई राजनीतिक मील के पत्थर स्थापित करता है। चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं, इसलिए भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की संसद के दोनों सदनों पर पकड़ और मजबूत हो जाएगी। यह संस्थागत भूमिका उन्हें विधायी प्रक्रियाओं को प्रभावी रूप से संचालित करने में मदद देगी।
तमिलनाडु जैसे राज्य में, जहाँ भाजपा अब तक मजबूत उपस्थिति नहीं बना पाई है, वहाँ से एक नेता का चयन भाजपा की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। एक तमिल और गौंडर समुदाय से आने वाले नेता को इस प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त कर, सरकार ने दक्षिण भारत में राजनीतिक पहुँच बढ़ाने की कोशिश की है।
नए उपराष्ट्रपति की आरएसएस पृष्ठभूमि यह दिखाती है कि संवैधानिक पदों में वैचारिक सामंजस्य बढ़ रहा है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति — तीनों ही अब एक समान वैचारिक मूल्यों से जुड़े हुए हैं।
152 वोटों के अंतर से मिली जीत यह दर्शाती है कि वर्तमान विपक्ष सरकार के नामांकनों को प्रभावी रूप से चुनौती नहीं दे पा रहा है। क्रॉस वोटिंग के पैटर्न आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन के अंदर दरारें दर्शाते हैं, जो भविष्य में विपक्षी एकता को प्रभावित कर सकते हैं।
धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद राधाकृष्णन की नियुक्ति प्रशासनिक स्थिरता प्रदान करती है और संवैधानिक नेतृत्व में वैचारिक संतुलन बनाए रखती है।
निष्कर्ष
सीपी राधाकृष्णन की जीत हमारे देश की राजनीतिक संरचना में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में उभरती है। वे महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका से भारत के उपराष्ट्रपति बने हैं, और उन्हें संसद का मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है। 152 वोटों का अंतर एनडीए की संख्या बल को दर्शाता है और विपक्ष की ओर से हुई क्रॉस वोटिंग को भी उजागर करता है।
यह चुनाव परिणाम निस्संदेह भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की संसद पर पकड़ को और मजबूत करता है, विशेष रूप से राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उपराष्ट्रपति की भूमिका को देखते हुए। भाजपा की यह रणनीति दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में अपनी पकड़ बढ़ाने की दिशा में एक सोची-समझी योजना प्रतीत होती है।
राधाकृष्णन की आरएसएस पृष्ठभूमि और भाजपा में उनके राजनीतिक अनुभव ने संवैधानिक शीर्ष पदों पर वैचारिक सामंजस्य को और मज़बूत किया है। अब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति — तीनों ही एक समान दर्शन से प्रेरित हैं।
धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद यह संक्रमण संवैधानिक स्थिरता सुनिश्चित करता है और हमारे लोकतंत्र की वर्तमान राजनीतिक वास्तविकता को दर्शाता है। स्वयंसेवक से लेकर सांसद, फिर राज्यपाल और अब उपराष्ट्रपति तक की यात्रा उनके समर्पण और अनुभव की कहानी है। भारत के दूसरे सबसे ऊँचे संवैधानिक अधिकारी के रूप में वे अब हमारी संसदीय लोकतंत्र की अगली दिशा को आकार देंगे, अपनी सुलभ प्रकृति और विशाल अनुभव के साथ।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
प्र.1: सीपी राधाकृष्णन कौन हैं और उन्होंने हाल ही में कौन सा पद प्राप्त किया है?
सीपी राधाकृष्णन एक अनुभवी संगठनकर्ता और वरिष्ठ राजनेता हैं, जिन्हें हाल ही में भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया है। उन्होंने 452 वोटों के साथ 152 वोटों के अंतर से यह चुनाव जीता।
प्र.2: राधाकृष्णन की राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है?
राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में की थी। वे कोयंबटूर से दो बार सांसद रहे, कई राज्यों के राज्यपाल भी बने, और तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं।
प्र.3: राधाकृष्णन का निर्वाचन भारत की राजनीति को कैसे प्रभावित करता है?
उनके निर्वाचन से एनडीए की संसद के दोनों सदनों पर पकड़ और मजबूत हुई है। यह भाजपा की दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु, में पैठ बढ़ाने की रणनीति को भी दर्शाता है।
प्र.4: भारत के उपराष्ट्रपति की मुख्य जिम्मेदारियाँ क्या होती हैं?
भारत के उपराष्ट्रपति देश के दूसरे सबसे ऊँचे संवैधानिक अधिकारी होते हैं और राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करते हैं। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या असमर्थता की स्थिति में वे कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका भी निभाते हैं।
प्र.5: राधाकृष्णन की पृष्ठभूमि भारत के पिछले उपराष्ट्रपतियों से कैसे भिन्न है?
जहाँ अधिकांश पूर्व उपराष्ट्रपति न्यायिक या कूटनीतिक पृष्ठभूमि से आते थे, राधाकृष्णन एक पूर्णकालिक राजनेता हैं। यह दिखाता है कि अब पार्टी में संगठनात्मक अनुभव और निष्ठा संवैधानिक पदों तक पहुँचने में अहम हो गई है।