भारत की आज़ादी और पहचान सिर्फ़ बड़े शहरों, बड़े नेताओं और बड़े आंदोलनों से नहीं बनी, बल्कि जंगलों, पहाड़ों और दूर–दराज़ इलाक़ों में रहने वाले आदिवासी समुदायों ने भी इसमें अपना खून–पसीना दिया। इन्हीं जनजातीय नायकों के संघर्ष, बलिदान और संस्कृति का सम्मान करने के लिए हर साल 15 नवम्बर को “जनजातीय गौरव दिवस” मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता और हर समुदाय के सम्मान में छुपी है।
जनजातीय गौरव दिवस क्या है?
जनजातीय गौरव दिवस वह राष्ट्रीय दिवस है, जो हर साल 15 नवम्बर को पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य भारत के आदिवासी/जनजातीय समाज के योगदान, विशेषकर स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका को सम्मान देना है।
कई सालों तक आदिवासी नायकों के संघर्ष को उतनी जगह नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने यह तय किया कि एक ऐसा दिन हो, जो विशेष रूप से जनजातीय समाज के गौरव, संघर्ष और पहचान को समर्पित हो। यही सोच आगे चलकर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में सामने आई।
15 नवम्बर को ही जनजातीय गौरव दिवस क्यों मनाया जाता है?
15 नवम्बर की तारीख केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसी दिन महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।
भगवान बिरसा मुंडा ने कम उम्र में ही अंग्रेज़ों की नीतियों, ज़मीन छीनने वाले कानूनों और आदिवासी समाज पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा किया। उनकी जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने के पीछे संदेश साफ है –
आदिवासी नायक केवल किसी एक राज्य या क्षेत्र के नहीं,
वे पूरे भारत के लिए प्रेरणा–स्रोत हैं।
इस तरह 15 नवम्बर को मनाया जाने वाला यह दिवस, एक तरफ़ बिरसा मुंडा की विरासत को याद करता है, तो दूसरी तरफ़ पूरे आदिवासी समाज के योगदान का सम्मान भी करता है।
भगवान बिरसा मुंडा – धरती आबा और जनजातीय स्वाभिमान के प्रतीक
जनजातीय गौरव दिवस को समझना है, तो भगवान बिरसा मुंडा के जीवन को समझना बहुत ज़रूरी है।
उनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को वर्तमान झारखण्ड क्षेत्र के उलिहातु गाँव में हुआ। वे मुण्डा जनजाति से थे और बचपन से ही उन्होंने अपने समाज पर हो रहे अत्याचार, वन–नीति, ज़मीन हड़पने और धार्मिक–सामाजिक दबाव को महसूस किया।
समय के साथ वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सामाजिक मार्गदर्शक बन गए। आदिवासी समाज उन्हें प्यार से “धरती आबा” कहकर पुकारता है, जिसका अर्थ है – धरती के पिता। यह संबोधन बताता है कि वे अपने लोगों के लिए कितने बड़े संरक्षक माने जाते हैं।
उनके नेतृत्व में चला आंदोलन “उलगुलान” (अर्थ – महाविद्रोह) केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह आदिवासी पहचान, ज़मीन, जंगल और सम्मान की रक्षा के लिए उठी विशाल आवाज़ थी। दुर्भाग्य से बहुत कम उम्र, लगभग 25 वर्ष के आसपास ही उनका देहावसान हो गया, लेकिन इतने छोटे जीवन में भी उन्होंने जो चेतना जगाई, उसने पूरे देश के जनजातीय क्षेत्र को प्रेरित किया।
इसीलिए उनकी जन्म–तिथि को हमेशा के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में स्थापित किया गया, ताकि देश हर साल उनकी और अन्य जनजातीय नायकों की याद में सिर झुका सके।
स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज का योगदान
जब हम स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते हैं, तो ज़्यादातर नाम बड़े शहरों और राष्ट्रीय नेताओं के आते हैं। लेकिन सच यह है कि जनजातीय क्षेत्रों में भी कई बड़े विद्रोह और आंदोलन हुए, जो अंग्रेज़ी हुकूमत को खुली चुनौती दे रहे थे।
झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर–पूर्वी राज्यों और अन्य क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों ने अपने–अपने तरीके से अंग्रेज़ों का विरोध किया।
उनका संघर्ष केवल “अंग्रेज़ भारत छोड़ो” तक सीमित नहीं था, बल्कि:
ज़मीन पर अधिकार,
जंगल और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा,
अपनी भाषा, रीति–रिवाज़ और धर्म की स्वतंत्रता,
इन सबके लिए भी था।
कई विद्रोह, जैसे अलग–अलग जनजातियों के आंदोलन, स्थानीय स्तर पर बहुत शक्तिशाली थे, परंतु इतिहास की मुख्यधारा में उन्हें उतनी जगह नहीं मिल पाई। जनजातीय गौरव दिवस उन भूले–बिसरे संघर्षों को फिर से सामने लाने का काम करता है और यह संदेश देता है कि आज़ादी की लड़ाई केवल मैदानों में नहीं, बल्कि पहाड़ों और जंगलों में भी लड़ी गई थी।
आज के समय में जनजातीय गौरव दिवस की ज़रूरत
कुछ लोग सोच सकते हैं कि जब आज़ादी मिल चुकी है, तो आज के समय में जनजातीय गौरव दिवस की क्या ज़रूरत है?
दरअसल, यह दिवस केवल इतिहास याद करने के लिए नहीं, बल्कि सोच बदलने के लिए भी है।
आज भी कई बार जनजातीय समाज को “पिछड़ा” या “मुख्यधारा से दूर” कह दिया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि उनकी जीवन–शैली, प्रकृति से जुड़ाव, सामूहिकता और सादगी – आज की दुनिया के लिए एक बड़ी सीख है।
जनजातीय गौरव दिवस हमें सिखाता है कि:
विकास का मतलब केवल इमारतें और सड़कें नहीं,
विकास का मतलब यह भी है कि हर समुदाय की पहचान और सम्मान सुरक्षित रहे।
आदिवासी समाज के पारम्परिक ज्ञान, जैसे जंगलों की समझ, जड़ी–बूटियों की जानकारी, पानी और जमीन का संतुलित उपयोग – ये सब आज के दौर में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
यह दिवस युवाओं को प्रेरित करता है कि वे जनजातीय समाज को सिर्फ़ “समाचारों” के माध्यम से नहीं, बल्कि सम्मान और समझ के साथ देखें।
भारत में जनजातीय गौरव दिवस कैसे मनाया जाता है?
15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस पूरे देश में अलग–अलग तरीकों से मनाया जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों में भगवान बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय नायकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आदिवासी नृत्य, गीत, वाद्य–यंत्र और पारम्परिक पहनावा मुख्य आकर्षण रहते हैं।
कई जगहों पर जन–जागरूकता रैलियाँ, प्रदर्शनी, सेमिनार और व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं, जहाँ इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र मिलकर जनजातीय इतिहास और वर्तमान चुनौतियों पर चर्चा करते हैं।
राज्यों और स्थानीय स्तर पर, खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में, यह दिन उत्सव जैसा बन जाता है। गाँव–गाँव में कार्यक्रम, स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुति, पारम्परिक व्यंजन, हस्तशिल्प मेले और सांस्कृतिक संध्या – सब मिलकर यह संदेश देते हैं कि जनजातीय संस्कृति भारत की धरोहर है।
स्कूल और कॉलेजों में निबंध, भाषण, पोस्टर–निर्माण, नाटक और क्विज़ प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इन गतिविधियों का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को यह समझाना होता है कि जनजातीय गौरव दिवस केवल कैलेंडर की तारीख नहीं, बल्कि गर्व और कृतज्ञता का दिन है।
विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए महत्वपूर्ण बातें
जो छात्र GK/GS की तैयारी कर रहे हैं या किसी प्रतियोगी परीक्षा जैसे UPSC, State PCS, SSC, Defence exams आदि की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए जनजातीय गौरव दिवस से जुड़े कुछ तथ्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन्हें आप अपने नोट्स में ज़रूर लिख सकते हैं:
जनजातीय गौरव दिवस हर साल 15 नवम्बर को मनाया जाता है।
यह दिवस विशेष रूप से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और आदिवासी समाज के योगदान के सम्मान में मनाया जाता है।
भारत सरकार ने वर्ष 2021 में इसे आधिकारिक रूप से शुरू किया।
उद्देश्य – जनजातीय नायकों के संघर्ष, बलिदान और संस्कृति को मुख्यधारा में लाना।
इस दिन देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, रैलियाँ, सेमिनार और शैक्षणिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।
इन बिन्दुओं को याद रखना परीक्षा के दृष्टिकोण से काफी उपयोगी रहेगा।
निष्कर्ष – जनजातीय गौरव दिवस हमें क्या सिखाता है?
जनजातीय गौरव दिवस हमें यह याद दिलाता है कि किसी भी मज़बूत राष्ट्र की नींव केवल इमारतों, सड़कों या तकनीक से नहीं बनती,
बल्कि उन करोड़ों लोगों की मेहनत, संघर्ष और संस्कृतियों से बनती है, जो उसे अपने खून–पसीने से सींचते हैं।
यह दिवस हमें सिखाता है कि:
आदिवासी समाज भारत की पहचान का अभिन्न हिस्सा है।
उनके बिना भारत की आज़ादी, संस्कृति और पर्यावरण की कहानी अधूरी है।
उनकी संघर्ष–गाथाएँ, लोक–परम्पराएँ और प्रकृति–प्रेम आज भी हमारे लिए मार्गदर्शन हैं।
15 नवम्बर को जब हम जनजातीय गौरव दिवस मनाते हैं,
तो यह केवल एक ऐतिहासिक औपचारिकता नहीं,
बल्कि यह एक वादा है –
कि हम अपनी जड़ों, अपने आदिवासी भाइयों–बहनों और उनके योगदान को न केवल याद रखेंगे,
बल्कि उनके सम्मान और अधिकारों की आवाज़ को भी मज़बूती से आगे बढ़ाते रहेंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – जनजातीय गौरव दिवस
1. जनजातीय गौरव दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
जनजातीय गौरव दिवस हर साल 15 नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिन आदिवासी समाज के संघर्ष, बलिदान और योगदान के साथ–साथ भगवान बिरसा मुंडा की जयंती की स्मृति में मनाया जाता है, ताकि उनका गौरव और इतिहास आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके।
2. जनजातीय गौरव दिवस का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य यह है कि देश आदिवासी समुदाय के स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण में योगदान को सम्मान दे। साथ ही, जनजातीय इतिहास और संस्कृति को मुख्यधारा में लाकर युवाओं में जागरूकता और गर्व की भावना पैदा की जा सके।
3. भगवान बिरसा मुंडा को जनजातीय गौरव दिवस से कैसे जोड़ा जाता है?
भगवान बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज का महान नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। उनकी जयंती 15 नवम्बर को ही पड़ती है। इसलिए उसी दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में चुना गया, ताकि उनके साथ–साथ सभी जनजातीय नायकों को राष्ट्रीय स्तर पर याद किया जा सके।
4. जनजातीय गौरव दिवस भारत में किन–किन तरीकों से मनाया जाता है?
इस दिन राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम, सांस्कृतिक समारोह, सेमिनार, रैलियाँ और प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं। स्कूल–कॉलेजों में निबंध, भाषण, नाटक, पोस्टर–निर्माण और क्विज़ प्रतियोगिताएँ होती हैं। आदिवासी बहुल इलाकों में पारम्परिक नृत्य, गीत, लोक–कथाएँ और हस्तशिल्प मेलों के माध्यम से यह दिवस उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
5. प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जनजातीय गौरव दिवस क्यों महत्वपूर्ण है?
कई प्रतियोगी परीक्षाओं के GK/GS सेक्शन में राष्ट्रीय दिवस, महत्वपूर्ण तिथियाँ, नायक और सरकारी पहल से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। जनजातीय गौरव दिवस नई पहल होने के बावजूद बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्वतंत्रता संग्राम, संविधानिक मूल्यों, सांस्कृतिक विविधता और जनजातीय नीतियों से जुड़ा विषय है। इसलिए इसकी तारीख, उद्देश्य और पृष्ठभूमि याद रखना परीक्षा की दृष्टि से बहुत उपयोगी होता है।
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