अगर आप जलवायु परिवर्तन, जंगलों, नौकरियों या अपने शहर के भविष्य की फिक्र करते हैं, तो आने वाले महीनों में आप UN Climate Change Conference 2025 का नाम बार-बार सुनेंगे।
10–21 नवंबर 2025 के बीच, दुनिया भर के नेता, वैज्ञानिक, एक्टिविस्ट और बिज़नेस लीडर ब्राज़ील के शहर Belém में इकट्ठा होंगे, जहां Cop -30 यानी 30वीं बड़ी वैश्विक जलवायु कॉन्फ़्रेंस आयोजित होगी। यह ब्लॉग आपको आसान भाषा में समझाएगा कि Cop -30 क्या है, यह क्यों ज़रूरी है, और यह आपकी ज़िंदगी से कैसे जुड़ा हुआ है।
UN Climate Change Conference 2025 क्या है?
UN Climate Change Conference 2025 असल में उन सभी देशों की सालाना बैठक है जो संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) के सदस्य हैं। इस मीटिंग में सरकारें मिलकर देखती हैं कि दुनिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने, जंगलों की रक्षा करने और जलवायु प्रभावों के अनुकूल बनने में कितनी प्रगति कर रही है। इसी बड़े इवेंट को Cop -30 भी कहा जाता है, क्योंकि यह UNFCCC के तहत होने वाली “Conference of the Parties” की 30वीं बैठक है।
आज UNFCCC में 198 पक्ष (197 देश और यूरोपीय संघ) सदस्य हैं। इसलिए UN Climate Change Conference 2025 लगभग पूरी दुनिया की जलवायु संसद जैसा बन जाता है। बड़े देश जैसे भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ के साथ-साथ छोटे द्वीपीय देश, सबसे गरीब देश और जलवायु-संवेदी क्षेत्र सभी इसमें हिस्सा लेते हैं।
Belém में होने वाले Cop -30 में ये देश मज़बूत लक्ष्य, ज़्यादा फाइनेंस और साफ़ नियमों पर सहमति बनाने की कोशिश करेंगे, ताकि पेरिस समझौते के लक्ष्य अभी भी बचाए जा सकें।
COP की शुरुआत कैसे हुई? एक छोटा इतिहास
UN Climate Change Conference 2025 को समझने के लिए हमें 1990 के दशक की शुरुआत में वापस जाना होगा। 1992 में ब्राज़ील के Rio de Janeiro में Earth Summit हुआ, जहां देशों ने UNFCCC अपनाया। इसका सीधा सा मकसद था: ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को ऐसे स्तर पर स्थिर करना, जो जलवायु पर “खतरनाक” मानवीय असर को रोक सके। यही संधि आगे चलकर आज के Cop -30 और बाकी सभी COP मीटिंग्स की आधार बनी।
पहली Conference of the Parties, यानी COP1, 1995 में बर्लिन में हुई। इसके बाद COP हर साल अलग-अलग शहरों में होती रही:
COP3, Kyoto, Japan (1997) – यहां Kyoto Protocol बना।
COP13, Bali (2007) – यहां से एक नया रोडमैप शुरू हुआ।
COP15, Copenhagen (2009) – यहां दिखा कि न्यायपूर्ण समझौता कितना कठिन है।
COP21, Paris (2015) – इसने दुनिया को नया, लचीला जलवायु समझौता दिया।
इसके बाद Glasgow, Sharm el-Sheikh, Dubai जैसी COPs में नियम, फाइनेंस और प्रगति की समीक्षा पर ध्यान रहा।
इन सभी बैठकों ने मिलकर UN Climate Change Conference 2025 की नींव रखी। हर COP ने दुनिया को सिर्फ़ वादों से आगे बढ़ाकर असली लक्ष्यों, नियमों और जवाबदेही की दिशा में थोड़ा-थोड़ा धकेला और अब वही सफर Cop -30 तक पहुंच चुका है।
Kyoto Protocol क्या था और क्यों महत्वपूर्ण है?
इतिहास का एक बड़ा पड़ाव है Kyoto Protocol, जो 1997 में COP3 (Kyoto) के दौरान अपनाया गया। Kyoto Protocol पहला ऐसा समझौता था, जिसमें विकसित देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य तय किए गए। इन लक्ष्यों के तहत अमीर, औद्योगिक देशों को 1990 के स्तर की तुलना में अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाना था, और यह प्रतिबद्धता 2020 तक के दो अलग-अलग समयखंडों में लागू रही।
Kyoto के तहत विकासशील देशों पर बाध्यकारी लक्ष्य नहीं थे, लेकिन वे अपने यहां जलवायु-हितैषी प्रोजेक्ट बनाकर निवेश आकर्षित कर सकते थे। यही से कार्बन ट्रेडिंग की अवधारणा मज़बूती से सामने आई, जो आज भी UN Climate Change Conference 2025 और Cop -30 की बहसों का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Carbon trading क्या होता है? आसान भाषा में
Carbon trading का मतलब है – प्रदूषण पर कीमत लगाना और उत्सर्जन घटाने वालों को आर्थिक फायदा देना। Kyoto Protocol के तहत तीन मुख्य बाज़ार-तंत्र बनाए गए:
देशों के बीच emissions trading,
विकसित देशों के बीच Joint Implementation प्रोजेक्ट,
और Clean Development Mechanism (CDM), जिसमें अमीर देश विकासशील देशों में स्वच्छ प्रोजेक्ट लगाकर बदले में “कार्बन क्रेडिट” लेते थे।
आसान भाषा में, carbon trading का अर्थ है:
जहां उत्सर्जन घटाना सस्ता और आसान हो, वहां पर सफाई का काम किया जाए और जो देश या कंपनी ज़्यादा कटौती कर ले, वह अतिरिक्त कमी को “क्रेडिट” बनाकर दूसरे को बेच सके, जिसे उत्सर्जन घटाना महंगा पड़ रहा हो। इस तरह दुनिया कुल मिलाकर तय लक्ष्य तक सस्ती लागत पर पहुंच सकती है।
समय के साथ कई कार्बन मार्केट बने – जैसे यूरोपीय संघ का Emissions Trading System, और कई स्वैच्छिक बाज़ार जहां कंपनियां अपनी उत्सर्जन की भरपाई के लिए क्रेडिट खरीदती हैं।
अब पेरिस समझौते के Article 6 के तहत देश नए वैश्विक कार्बन मार्केट नियम बना रहे हैं, ताकि ये मार्केट सच में जलवायु को फायदा पहुंचाएं, सिर्फ कागज़ी क्रेडिट न बनाएं। Cop -30 में पारदर्शिता, दोहरी गिनती रोकने के नियम और मानवाधिकार सुरक्षा पर महत्वपूर्ण फ़ैसले होने की उम्मीद है। इसी वजह से UN Climate Change Conference 2025 में carbon trading फिर से मुख्य मुद्दा बनेगा।
Paris Summit क्या था और इसका महत्व क्या है?
अगर Kyoto पहला कदम था, तो Paris Summit टर्निंग पॉइंट था। 2015 में COP21, Paris के दौरान देशों ने Paris Agreement अपनाया। यही समझौता आज की वैश्विक जलवायु कार्रवाई का केंद्र है और UN Climate Change Conference 2025 के लिए सबसे बड़ा संदर्भ भी।
Paris Summit ने तीन मुख्य बदलाव किए:
लंबी अवधि का तापमान लक्ष्य
दुनिया ने तय किया कि ग्लोबल तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर की तुलना में 2°C से काफी नीचे रखना है और कोशिश करनी है कि इसे 1.5°C तक सीमित रखा जाए। वैज्ञानिकों के अनुसार 1.5°C से ऊपर जाने पर हीटवेव, सूखा, बाढ़ और समुद्र-स्तर वृद्धि के खतरे बहुत बढ़ जाते हैं।सभी देशों के लिए राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ (NDCs)
Kyoto की तरह केवल अमीर देशों के लिए तय लक्ष्य रखने के बजाय Paris में हर देश को अपनी जलवायु योजना बनानी होती है, जिसे NDC – Nationally Determined Contribution कहते हैं। इसमें बताया जाता है कि वह देश उत्सर्जन कैसे घटाएगा और जलवायु प्रभावों के अनुकूल कैसे बनेगा।हर पाँच साल बाद लक्ष्य मजबूत करने की व्यवस्था
Paris Agreement के तहत हर पाँच साल में देशों को अपनी NDCs और मज़बूत करनी होती हैं। इस “ratchet mechanism” का मकसद है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी के नए स्तर के अनुसार कदम-कदम पर महत्वाकांक्षा बढ़ती रहे।
Belém में होने वाली UN Climate Change Conference 2025 इसी प्रक्रिया का एक अहम पड़ाव है, क्योंकि यहां देशों से 2035 तक की अवधि के लिए काफी मज़बूत NDCs की उम्मीद की जा रही है। इसीलिए कई विशेषज्ञ Cop -30 को Paris लक्ष्यों के लिए “make-or-break” समिट मान रहे हैं।
198 सदस्य देश इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
आज UNFCCC के 198 पक्ष हैं – लगभग हर UN सदस्य राज्य, यूरोपीय संघ और कुछ अन्य पक्ष। यह लगभग वैश्विक सार्वभौमिक सदस्यता UN Climate Change Conference 2025 को खास बनाती है।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, इसलिए समाधान भी वैश्विक होना ही चाहिए। Cop -30 में होने वाले फ़ैसले उन वार्ताओं पर आधारित होंगे, जिनमें लगभग पूरी दुनिया की सरकारें शामिल हैं – बड़े उत्सर्जक देश भी और छोटे, असुरक्षित द्वीपीय देश भी।
हां, सभी पक्षों की ताकत बराबर नहीं है। कई समूह – जैसे G77 (विकासशील देशों का समूह), Least Developed Countries ग्रुप, तथा उच्च महत्वाकांक्षा वाले देशों के गठजोड़ – फाइनेंस, मजबूत नियम और जलवायु न्याय के मुद्दों पर अहम भूमिका निभाते हैं।
फिर भी यह तथ्य कि 198 पार्टियाँ एक ही प्रक्रिया में बैठती हैं, यह संदेश देता है कि जलवायु कार्रवाई साझा ज़िम्मेदारी है। यही वजह है कि UN Climate Change Conference 2025 को इतना महत्व दिया जाता है।
Belém, Brazil में होने वाला Cop -30 खास क्यों है?
UN Climate Change Conference 2025 की सबसे अलग बात यह है कि यह ब्राज़ील के शहर Belém में होगा, जो अमेज़न क्षेत्र का हिस्सा है। इतिहास में पहली बार कोई COP सीधे उन उष्णकटिबंधीय वनों के दिल में हो रहा है, जो दुनिया के सबसे बड़े कार्बन भंडारों में से एक हैं।
अमेज़न जंगल:
भारी मात्रा में कार्बन अपने अंदर समेटे हुए हैं,
दक्षिण अमेरिका और अन्य क्षेत्रों के वर्षा-पैटर्न को प्रभावित करते हैं,
और करोड़ों लोगों व आदिवासी समुदायों का घर हैं।
Cop -30 को Belém में आयोजित करना ये साफ़ संदेश देता है कि जंगलों की रक्षा और वनवासियों के अधिकार जलवायु समाधान के केंद्र में हैं।
ब्राज़ील की सरकार खुद को अमेज़न की रक्षा करने वाला और जलवायु कार्रवाई में वैश्विक लीडर के रूप में पेश कर रही है, लेकिन यही स्थान हमें कठोर सच्चाई भी दिखाता है – वनों की कटाई, आग, ज़मीनों पर संघर्ष और असमानता के मुद्दे भी वहीं मौजूद हैं। उम्मीद और चुनौती का यही मिश्रण UN Climate Change Conference 2025 और Cop -30 का माहौल तय करेगा।
Cop -30 के मुख्य मुद्दे क्या होंगे?
हर COP में कई जटिल विषय चलते हैं, लेकिन UN Climate Change Conference 2025 और Cop -30 में कुछ बड़े मुद्दे चर्चा के केंद्र में रहने की संभावना है:
1. मज़बूत जलवायु योजनाएँ (NDCs)
2025 तक देशों को 2035 तक की अवधि के लिए नई या अपडेटेड NDCs जमा करनी हैं। Cop -30 में दुनिया देखेगी कि क्या ये योजनाएँ सच में 1.5°C लक्ष्य के अनुरूप हैं या नहीं।
आज भी बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि मौजूदा वादे काफी कमज़ोर हैं। इसलिए उम्मीद है कि UN Climate Change Conference 2025 देशों को इस दशक में कोयला, तेल और गैस पर निर्भरता तेज़ी से घटाने की ओर धकेलेगा।
2. Climate finance और नया वैश्विक लक्ष्य
विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने, मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और जलवायु नुकसान से निपटने के लिए भारी फाइनेंस की ज़रूरत है। अमीर देशों ने पहले 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष का वादा किया था, लेकिन इसकी पूर्ति धीमी रही और भरोसा कमज़ोर हुआ।
अब 2025 के बाद के लिए नया वैश्विक climate finance लक्ष्य तय किया जा रहा है। Belém में Cop -30 के दौरान सबसे कठिन सवाल होगा – कौन कितना पैसा देगा, किन शर्तों पर देगा और किस जरूरत के लिए देगा? UN Climate Change Conference 2025 से निकलने वाले जवाब आने वाले वर्षों में ज़मीनी प्रोजेक्ट्स पर असर डालेंगे।
3. Carbon markets और Article 6 के नियम
जैसा ऊपर समझा, carbon trading एक ताकतवर टूल हो सकता है, अगर इसे सख़्त और ईमानदार नियमों के साथ लागू किया जाए। Paris Agreement के तहत देश Article 6 के नियमों पर काम कर रहे हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय carbon markets:
वास्तविक उत्सर्जन कटौती करें,
दोहरी गिनती न हो,
और स्थानीय समुदायों व मानवाधिकारों की रक्षा भी हो।
Cop -30 में पारदर्शिता, लेखा-जोखा और safeguards पर बड़े फैसले हो सकते हैं। साफ-सुथरे नियम तय होना UN Climate Change Conference 2025 की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक हो सकता है।
4. Loss and Damage
बहुत से देश पहले से ही जलवायु परिवर्तन से स्थायी नुकसान झेल रहे हैं – जैसे:
घरों का नष्ट होना,
खेती-किसानी की जमीन का बर्बाद होना,
सांस्कृतिक धरोहरों का खत्म होना।
हाल की COPs में “Loss and Damage” के लिए एक नया फंड बनाने पर सहमति बनी है, ताकि सबसे संवेदनशील देशों को मदद मिल सके। UN Climate Change Conference 2025 में यह तय करना ज़रूरी होगा कि इस फंड में वास्तविक पैसा कौन और कैसे डालेगा, और यह फंड ज़मीनी स्तर तक कैसे पहुंचेगा।
कई देशों के लिए Cop -30 की सफलता को मापने का सबसे बड़ा पैमाना यही होगा।
5. जंगल, महासागर और प्रकृति
क्योंकि Cop -30 Amazon क्षेत्र में हो रहा है, इसलिए nature-based solutions पर विशेष फोकस रहने की संभावना है। चर्चा इस बात पर होगी कि:
वनों की कटाई कैसे रोकी जाए,
खराब हो चुके लैंडस्केप को कैसे बहाल किया जाए,
जैव विविधता की रक्षा कैसे की जाए,
और यह सब करते हुए आदिवासी और स्थानीय समुदायों के अधिकार कैसे सुरक्षित रखे जाएं।
स्वस्थ जंगल, आर्द्रभूमि और महासागर बड़े natural carbon sinks हैं, इसलिए इन्हें सुरक्षित रखना Paris लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बेहद ज़रूरी है। UN Climate Change Conference 2025 जलवायु कार्रवाई को प्रकृति और biodiversity एजेंडा से जोड़ने की कोशिश करेगा।
Cop -30 के अंदर क्या होगा?
दो हफ्तों तक चलने वाले UN Climate Change Conference 2025 के दौरान Belém शहर अलग-अलग ज़ोन में बंट जाएगा। “Blue zone” में आधिकारिक वार्ताएँ होंगी। यहां:
देशों के प्रतिनिधि बैठक कक्षों में बैठेंगे,
हर लाइन के शब्दों पर बहस होगी,
और हर दिन नए ड्राफ्ट टेक्स्ट तैयार होंगे।
दूसरे हफ्ते में मंत्री स्तर के नेता आएंगे, जो सबसे कठिन राजनीतिक मुद्दों को हल करने की कोशिश करेंगे। यही वह समय होगा जब Cop -30 के बड़े निर्णय तय होंगे।
“Green zone” और पूरे शहर में हजारों लोग – जैसे बिज़नेस, शहरों के मेयर, विश्वविद्यालय, NGOs, युवा समूह और आदिवासी संगठन – अपने-अपने कार्यक्रम चलाएंगे। उनके लिए Cop -30:
नई टेक्नोलॉजी और जलवायु समाधान दिखाने की जगह है,
स्वैच्छिक वादों और गठबंधनों की घोषणा करने का प्लेटफॉर्म है,
नेटवर्किंग और पार्टनरशिप बनाने का मौका है,
और सरकारों पर ज़्यादा महत्वाकांक्षा दिखाने का दबाव बनाने का तरीका भी है।
दुनिया भर की मीडिया हर अपडेट पर नज़र रखेगी। अगर बातचीत आगे बढ़ती दिखेगी तो UN Climate Change Conference 2025 को “सफलता” कहकर 1.5°C लक्ष्य को ज़िंदा रखने वाली बैठक बताया जाएगा।
अगर वार्ता अटकती दिखी, तो सुर्खियाँ “असफलता”, “ग्रीनवॉशिंग” या “राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी” जैसे शब्दों से भर सकती हैं।
सच्चाई यह है कि हर COP, जिसमें Cop -30 भी शामिल है, एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है। प्रगति कभी-कभी धीमी होती है, पर हर कदम मायने रखता है।
| COP No. | Year | Country | Subject (Main Focus / Outcome) |
|---|
| COP-1 | 1995 | Germany | Berlin Mandate – future stronger commitments की तैयारी |
| COP-2 | 1996 | Switzerland | Kyoto जैसे binding targets की राजनीतिक सहमति की दिशा |
| COP-3 | 1997 | Japan | Kyoto Protocol – विकसित देशों के लिए कानूनी उत्सर्जन लक्ष्य |
| COP-4 | 1998 | Argentina | Buenos Aires Plan of Action – Kyoto लागू करने की रूपरेखा |
| COP-5 | 1999 | Germany | Kyoto के technical rules पर detailed बातचीत |
| COP-6 | 2000 | Netherlands | Kyoto rules पर असहमति, वार्ता अधूरी रही |
| COP-7 | 2001 | Morocco | Marrakech Accords – Kyoto के implementation rules तय |
| COP-8 | 2002 | India | Delhi Declaration – sustainable development और equity पर ज़ोर |
| COP-9 | 2003 | Italy | Kyoto project mechanisms (जैसे CDM) की operational details |
| COP-10 | 2004 | Argentina | Buenos Aires Programme of Work – adaptation पर ज़्यादा फोकस |
| COP-11 | 2005 | Canada | Montreal Action Plan – Kyoto की पहली commitment period आगे बढ़ाना |
| COP-12 | 2006 | Kenya | Adaptation funding और अफ्रीका की climate vulnerability पर ज़ोर |
| COP-13 | 2007 | Indonesia | Bali Action Plan – post-2012 global climate deal की रोडमैप |
| COP-14 | 2008 | Poland | Copenhagen agreement के लिए negotiating text की तैयारी |
| COP-15 | 2009 | Denmark | Copenhagen Accord – 2°C लक्ष्य, finance pledges पर political deal |
| COP-16 | 2010 | Mexico | Cancun Agreements – mitigation, adaptation, Green Climate Fund |
| COP-17 | 2011 | South Africa | Durban Platform – नया universal climate agreement process शुरू |
| COP-18 | 2012 | Qatar | Doha Amendment – Kyoto Protocol की दूसरी commitment period |
| COP-19 | 2013 | Poland | Warsaw International Mechanism on Loss and Damage स्थापित |
| COP-20 | 2014 | Peru | Lima Call for Climate Action – Paris Agreement के text की नींव |
| COP-21 | 2015 | France | Paris Agreement – 1.5–2°C लक्ष्य, NDC system, global stocktake |
| COP-22 | 2016 | Morocco | Paris rulebook पर काम शुरू, implementation details forward करना |
| COP-23 | 2017 | Germany (Fiji Presidency) | Fiji-led Talanoa Dialogue और ambition बढ़ाने पर फोकस |
| COP-24 | 2018 | Poland | Katowice Climate Package – Paris Agreement rulebook finalise |
| COP-25 | 2019 | Spain (Chile Presidency) | “Chile Madrid Time for Action” – Article 6 talks आगे, पर अधूरे |
| COP-26 | 2021 | United Kingdom | Glasgow Climate Pact – coal phase-down, 1.5°C पर जोर, NDC अपडेट |
| COP-27 | 2022 | Egypt | Sharm el-Sheikh Implementation Plan, Loss and Damage Fund पर सहमति |
| COP-28 | 2023 | United Arab Emirates | Dubai UAE Consensus – पहली Global Stocktake, fossil fuels transition संकेत |
| COP-29 | 2024 | Azerbaijan | New post-2025 climate finance goal पर negotiation (planning role) |
| COP-30 | 2025 | Brazil | Belém Amazon-focused summit – stronger 2035 NDCs और नई finance framework पर फोकस |
आम लोगों के लिए इसका क्या मतलब है?
कई बार लगता है कि UN Climate Change Conference 2025 सिर्फ़ डिप्लोमैट्स और विशेषज्ञों के लिए है, लेकिन Cop -30 में लिए गए फैसले आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भी असर डालेंगे:
ऊर्जा: मज़बूत जलवायु लक्ष्य मतलब – सौर, पवन और अन्य स्वच्छ ऊर्जा की तेज़ी से बढ़ोतरी, जो नई नौकरियां और साफ़ हवा दोनों दे सकती है।
ट्रांसपोर्ट: पॉलिसी इलेक्ट्रिक वाहनों, बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और पैदल/साइकिल-फ्रेंडली शहरों को बढ़ावा देती है।
शहर: अगर शहरों की प्लानिंग जलवायु जोखिम को ध्यान में रखकर होगी, तो बाढ़, हीटवेव और स्वास्थ्य पर असर कम किया जा सकता है।
खेती और गांव: climate-smart agriculture मिट्टी, पानी और किसानों की आय की सुरक्षा में मदद कर सकती है।
रोज़गार और स्किल्स: नई ग्रीन इंडस्ट्रीज़ – जैसे renewable energy, energy efficiency, climate finance – नई स्किल्स और अवसर पैदा करती हैं।
स्टूडेंट्स और युवा प्रोफेशनल्स के लिए UN Climate Change Conference 2025 और Cop -30 को समझना सिर्फ़ जनरल नॉलेज या न्यूज़ डिबेट के लिए नहीं है, बल्कि यह जानने के लिए ज़रूरी है कि दुनिया किस दिशा में जा रही है और आप अपनी पढ़ाई, करियर और समाज में किस तरह योगदान दे सकते हैं।
आप Cop -30 से क्या सीख सकते हैं और कैसे जुड़ सकते हैं?
भले ही आप कभी ब्राज़ील न जाएं, फिर भी आप Cop -30 को फॉलो कर सकते हैं और उससे सीख लेकर अपनी जगह पर काम कर सकते हैं:
अपने देश के नेताओं के बयान और वादों को देखें और समझें।
अपने देश की जलवायु योजना की तुलना समान स्तर वाले देशों से करें।
UN Climate Change Conference 2025 से जुड़ी कहानियों को प्रेज़ेंटेशन, प्रोजेक्ट, ब्लॉग या सोशल मीडिया में इस्तेमाल करें।
अपने शहर या गांव में चल रहे पर्यावरण, पेड़ लगाने, स्वच्छ ऊर्जा या जल संरक्षण अभियानों से जुड़ें।
निष्कर्ष: Cop -30 अभी क्यों महत्वपूर्ण है?
UN Climate Change Conference 2025 केवल एक राजनीतिक मीटिंग नहीं है; यह एक ऐसा संकेत है जो सरकारों, कंपनियों, शहरों और नागरिकों को यह दिखाता है कि दुनिया किस तरह का भविष्य बनाना चाहती है।
UN Climate Change Conference 2025 ऊर्जा, ट्रांसपोर्ट, हाउसिंग और नौकरियों से जुड़ी नीतियों को आने वाले वर्षों के लिए तय करने में मदद करेगा।
UN Climate Change Conference 2025 एक आईने की तरह भी काम करेगा – यह दिखाएगा कि सरकारें सच में जलवायु कार्रवाई को कितनी गंभीरता से ले रही हैं, और कहाँ अभी भी सख्त फैसलों से बचा जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन अब दूर की समस्या नहीं है। हीटवेव, बाढ़, सूखा, अनियमित मानसून और समुद्र-स्तर बढ़ना – ये सब आज ही स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। Belêm में होने वाला UN Climate Change Conference 2025 ऐसे समय पर हो रहा है जब विज्ञान साफ़-साफ़ कह रहा है कि यह दशक ही निर्णायक है।
Cop -30 में 198 पार्टियाँ, हज़ारों विशेषज्ञ और तमाम तरह के विचार मिलेंगे – उत्सर्जन घटाने, प्रकृति बचाने और कमजोर देशों की मदद करने के लिए। दो हफ्तों में सब कुछ हल नहीं होगा, लेकिन Cop -30 भविष्य की दिशा तय करने वाला एक बड़ा कदम जरूर होगा।
Kyoto से Paris तक की यात्रा, carbon trading की भूमिका और Paris Summit की अहमियत को समझकर आप Cop -30 को किसी उलझे हुए कूटनीतिक शो के बजाय एक लंबी वैश्विक यात्रा का अगला ज़रूरी पड़ाव देख सकते हैं।
UN Climate Change Conference 2025 में लिए गए फैसले आने वाली पीढ़ियों के जलवायु, अर्थव्यवस्था और अवसरों पर असर डालेंगे। इसी वजह से यह कॉन्फ़्रेंस आपकी जागरूकता, आपके सवालों और जहां तक संभव हो, आपकी अपनी जलवायु कार्रवाई की हकदार है।

























