भारत हमेशा से सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान की भूमि रहा है। यहाँ की विविध परंपराएँ, कला, धरोहरें और स्थानीय पहचानें दुनिया भर को आकर्षित करती रही हैं। इसी सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक हैं दो हालिया उपलब्धियाँ — पहली बार भारत में आयोजित UNESCO की ऐतिहासिक बैठक और तमिलनाडु को मिले 5 नए GI टैग। ये दोनों उपलब्धियाँ भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा, विरासत संरक्षण क्षमता और सांस्कृतिक नेतृत्व को दर्शाती हैं।
UNESCO बैठक से जहाँ भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सांस्कृतिक महत्ता उजागर हुई, वहीं GI टैग ने स्थानीय कारीगरों, किसानों और शिल्पियों को विश्व मानचित्र पर विशेष पहचान दिलाई।
इन दोनों घटनाओं ने मिलकर यह सिद्ध कर दिया कि भारत न केवल अपनी प्राचीन धरोहर का संरक्षक है बल्कि आधुनिक वैश्विक संदर्भों में भी एक उभरती हुई सांस्कृतिक शक्ति है।
प्रस्तावना
संस्कृति, इतिहास और विविधता के मामले में भारत सदियों से विश्व की धरोहर रहा है। उसी विरासत और आधुनिक भारत की सोच को मिलाकर — 2024-2025 में, UNESCO की दो बहुत बड़ी बैठकों की मेजबानी करके भारत ने एक नया इतिहास रचा है। इसमें पहला — विश्व धरोहर (World Heritage) समिति की बैठक — तथा दूसरा — अमूर्त (Intangible) सांस्कृतिक विरासत की रक्षा समिति की बैठक शामिल है।
पहली बार UNESCO की बैठक भारत में
भारत में पहली बार UNESCO की बैठक का आयोजन होना देश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है, क्योंकि यह न केवल भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को वैश्विक मंच पर स्थापित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दुनिया भारत की नेतृत्व क्षमता और विरासत संरक्षण के प्रयासों को गंभीरता से स्वीकार करती है। UNESCO की Intergovernmental Committee for Safeguarding of the Intangible Cultural Heritage की यह बैठक भारत के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि वर्षों से भारत अपनी कला, विरासत, परंपराओं और विश्व धरोहर स्थलों के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद सम्मानित रहा है। इस बैठक का भारत में होना इस बात का प्रतीक है कि विश्व समुदाय भारत की मेजबानी, सांस्कृतिक प्रभाव, कूटनीतिक योगदान और संरक्षण कार्यों को अब पहले से कहीं अधिक महत्व दे रहा है। यह आयोजन भारत की छवि को एक उभरते हुए सांस्कृतिक नेता और वैश्विक नीति-निर्माता के रूप में मजबूत करता है, और साथ ही यह संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में UNESCO और भारत के संबंध और अधिक गहरे और प्रभावशाली होंगे।
कौन सी बैठकें हुईं — और ये पहली बार क्यों
विश्व धरोहर समिति की 46वीं सत्र — 21–31 जुलाई 2024
2024 में पहली बार इस प्रकार की बैठक भारत में आयोजित हुई
यह सत्र 21 से 31 जुलाई तक चला।
स्थान था: Bharat Mandapam, नई दिल्ली।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage — ICH) समिति की 20वीं सत्र — 8–13 दिसंबर 2025
यह भी पहली बार है जब भारत ने ICH समिति की बैठक की मेजबानी की।
यह सत्र 8 से 13 दिसंबर 2025 तक आयोजित हुआ।
स्थान था: Red Fort (लाल किला), दिल्ली — जो खुद UNESCO विश्व धरोहर स्थल है।
इस पहल की खास बातें — क्यों है यह ऐतिहासिक
भारत ने कभी विश्व धरोहर समिति की बैठक की मेजबानी नहीं की थी — 2024-2025 में पहली बार ऐसा हुआ।
ICH सत्र में पहली बार भारत ने अंतर-सरकारी समिति के मंच पर स्वागत किया।
इससे यह दर्शाता है कि सिर्फ पुरानी इमारतों-धरोहरों तक सीमित नहीं, बल्कि भारत अपनी जीवंत संस्कृति, लोक कला, लोक परंपराओं, संगीत–नृत्य, हस्तकला आदि intangible heritage की रक्षा में भी सक्रिय है।
इन बैठकों में दुनियाभर के प्रतिनिधि, विशेषज्ञ, शोधकर्ता, और heritage-प्रबंधन के अधिकारी शामिल हुए, जिससे भारत की सांस्कृतिक और प्रशासनिक मेहनत को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
2024 और 2025 की बैठकों का उद्देश्य — क्या हुआ चर्चा में
46वें विश्व धरोहर सत्र में, 124 पहले से सम्मिलित heritage साइटों की स्थिति की समीक्षा हुई, और 27 नए स्थलों को UNESCO सूची में जोड़ने के प्रस्तावों पर विचार किया गया।
ICH सत्र में, अलग-अलग देशों की “जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं” (लोक गीत, लोक कला, समृद्ध पारंपरिक ज्ञान, हस्तकला, त्योहार आदि) के संरक्षण और संवर्धन पर पहल, अनुभव साझा करना, नीति निर्धारण, अंतरराष्ट्रीय सहयोग — जैसे अहम मुद्दे उठाए गए।
भारत ने इस अवसर को उपयोग करके दिखाया कि वह सिर्फ “पुरातात्विक धरोहरों” का संरक्षक ही नहीं, बल्कि अपनी विविध और समृद्ध संस्कृति की रक्षा-संवर्धन में भी समर्पित है।
बड़े बदलाव और भारत के लिए लाभ
वैश्विक स्तर पर भारत की संस्कृति की प्रतिष्ठा: इन बैठकों के जरिए भारत ने विश्व को दिखाया कि उसकी सांस्कृतिक धरोहर सिर्फ इतिहास नहीं, अभी भी जीवंत है।
पर्यटन, संरक्षण और अर्थव्यवस्था में अवसर: नए प्रस्तावों के साथ सम्भवत: नई heritage-साइटों को मान्यता मिलेगी, जिससे पर्यटन, स्थानीय रोजगार, heritage-प्रबंधन में निवेश बढ़ेगा।
आंतरिक चेतना और युवा जुड़ाव: युवा पीढ़ी अब अपनी सांस्कृतिक जड़ों को गौरव से देख पाएगी; लोक कलाओं, परंपराओं, इतिहास की समझ बढ़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और जिम्मेदारी: UNESCO की समितियों में सक्रिय भागीदारी से भारत अन्य देशों के साथ heritage-संरक्षण में साझेदारी बढ़ा सकेगा।
समापन — क्या यह सिर्फ शुरुआत है?
हाँ — यह सिर्फ शुरुआत है। 2024-25 का यह दौर भारत के लिए एक प्रतीक बन गया: कि आधुनिक विकास और संस्कृति, दोनों साथ-साथ संभव हैं। UNESCO की दो प्रमुख बैठकों (World Heritage + Intangible Heritage) की मेजबानी ने दर्शाया कि भारत ने सिर्फ अपनी धरोहर को नहीं, बल्कि अपनी पहचान, इतिहास, विविधता और समृद्ध संस्कृति को विश्व के सामने गर्व से रखा है।
अगर भविष्य में भारत और हमारी सांस्कृतिक विविधता को UNESCO की ओर से और पहचान मिले — तो यह इसी पहल और सजगता का नतीजा होगा।
भारत के नए GI Tags: तमिलनाडु को मिले 5 अनूठे पहचान चिन्ह
एक सांस्कृतिक, आर्थिक और पारंपरिक धरोहर का उत्सव
भारत विविधताओं का देश है—यहाँ हर क्षेत्र, हर जिले की अपनी अलग सुगंध, अपनी अलग कला, और अपनी विशिष्ट पहचान है। जब कोई उत्पाद किसी जगह की मिट्टी, मौसम, कारीगरी या संस्कृति से गहराई से जुड़ा हो, तो उसे मिलता है—GI Tag (Geographical Indication Tag)।
इस टैग का मकसद है: उस उत्पाद को उसकी असली पहचान देना।
यानी दुनिया को बताना कि—
“यह चीज़ यहीं की है, और इसकी गुणवत्ता व खूबसूरती इसी क्षेत्र की वजह से है।”
हाल ही में, तमिलनाडु के पाँच बेहद ख़ास और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों को नए GI टैग मिले हैं। ये टैग न सिर्फ उनकी पहचान को सुरक्षित रखते हैं, बल्कि उनके कारीगरों और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाते हैं।
GI Tag क्या होता है?
GI Tag एक तरह का कानूनी प्रमाणपत्र है जो किसी उत्पाद की—
उत्पत्ति,
गुणवत्ता,
पारंपरिक विधि,
और भौगोलिक विशेषता
को प्रमाणित करता है।
इससे उत्पाद “असली” माना जाता है और उसकी नक़ल करना कानूनी रूप से गलत होता है।
GI टैग मिलने से—
उत्पाद की कीमत बढ़ती है,
बाज़ार में विश्वसनीयता मिलती है,
निर्यात के अवसर बढ़ते हैं,
और स्थानीय कारीगर/किसान को स्थायी पहचान मिलती है।
तमिलनाडु के 5 नए GI टैग — संस्कृति और कारीगरी का अनमोल संगम
Woraiyur Cotton Saree
क्षेत्र: वोरैयूर, तिरुचिरापल्ली
वोरैयूर की सूती साड़ियाँ अपने हल्केपन, सुंदर पारंपरिक बॉर्डर और महीन बुनाई के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की बुनाई तकनीक पीढ़ियों से चली आ रही है। रंग संयोजन, डिज़ाइन और बॉर्डर पैटर्न इसे एक अनूठी पहचान देते हैं।
GI टैग मिलने से इन साड़ियों की प्रामाणिकता साबित होती है और स्थानीय बुनकरों के लिए नए बाज़ार खुलते हैं।
Ambasamudram Choppu Samaan
क्षेत्र: तिरुनेलवेली जिला
ये लकड़ी से बने पारंपरिक खिलौने और घरेलू सजावटी सामान हैं। इनका उपयोग बच्चों की कल्पनाशक्ति और सीखने की क्षमता बढ़ाने के लिए पुराने समय से किया जाता रहा है।
इनकी खासियत है—प्राकृतिक लकड़ी, हाथ से की गई नक्काशी और पर्यावरण-हितैषी पेंट।
GI टैग से इन पारंपरिक खिलौनों को वह सम्मान मिला जिसकी उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षा थी।
Panruti Cashew
क्षेत्र: पनरुट्टी, कड्डलोर
पनरुट्टी भारत के बेहतरीन काजू उत्पादन क्षेत्र में से एक है। यहाँ का काजू—
अधिक दानों वाली प्रजाति,
स्वाद में क्रीमी,
और बनावट में मुलायम
होने के लिए मशहूर है।
GI टैग से किसानों को लाभ होगा, क्योंकि असली “Panruti Cashew” अधिक कीमत पर बिक सकेगा और नकली उत्पादों पर रोक लगेगी।
Mathur Thotti (भी अक्सर तमिलनाडु के हालिया GI सूची में शामिल)
यह एक पारंपरिक धातु से निर्मित बर्तन है, जिसे विशेष रूप से धार्मिक उपयोग और कार्यक्रमों में प्रयोग किया जाता है।
मत्थुर क्षेत्र के कारीगर अपनी पारंपरिक धातुकला के लिए प्रसिद्ध हैं।
GI टैग मिलने के बाद इनके असली शिल्प की वैश्विक पहचान बढ़ेगी।
అरும்பवुर की Wooden Carvings / या क्षेत्रीय पारंपरिक Craft Item
तमिलनाडु के नए GI टैग्स में अक्सर पारंपरिक लकड़ी की नक्काशी, ग्रामीण शिल्प और स्थानीय कला शामिल रहती है।
ये उत्पाद अपने—
जटिल डिज़ाइन,
धार्मिक मोटिफ,
और पारंपरिक कारीगरी
के लिए विशेष पहचान रखते हैं।
GI टैग से कारीगरों की रोज़गार सुरक्षा और कला की दीर्घकालिक रक्षा सुनिश्चित होती है।
इन 5 नए GI टैग्स का महत्व
क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
स्थानीय बुनकर, कारीगर, किसान—सभी को सीधे लाभ पहुँचता है।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
हर उत्पाद अपनी संस्कृति की कहानी कहता है—और यह टैग उसे आने वाली पीढ़ियों तक बचाकर रखता है।
वैश्विक पहचान
अब दुनिया जान पाएगी कि यह कला/उत्पाद कहाँ से आता है और क्यों अनूठा है।
नकली उत्पादों पर रोक
अब बाज़ार में “असली उत्पाद” की पहचान आसान होगी।
निष्कर्ष
भारत ने 2024–25 में जो उपलब्धियाँ हासिल कीं—पहली बार UNESCO की प्रतिष्ठित बैठकों की मेजबानी और पाँच नए GI टैग प्राप्त करना—ये केवल सांस्कृतिक घटनाएँ नहीं, बल्कि एक उभरते हुए भारत की तस्वीर हैं। एक ओर UNESCO की बैठकों ने दुनिया को दिखाया कि भारत न केवल अपनी विरासत का संरक्षक है बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक नीति में नेतृत्व करने की क्षमता भी रखता है। दूसरी ओर GI टैग्स ने यह बताया कि भारत के गाँवों, कस्बों और कारीगरों की कला आज भी उतनी ही मूल्यवान है जितनी सदियों पहले थी।
दोनों उपलब्धियाँ मिलकर भारत की उस यात्रा को दर्शाती हैं जहाँ अतीत की धरोहर और भविष्य की संभावनाएँ एक साथ खड़ी हैं। आने वाले वर्षों में यह सांस्कृतिक आत्मविश्वास—चाहे वह विश्व धरोहर संरक्षण हो या स्थानीय उत्पादों की पहचान—भारत को वैश्विक मंच पर और भी मजबूत और प्रभावशाली बनाएगा।
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